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[ पत्रयणसारो
केवली अरहंत के असातावेदनीय का उदय होते हुए भी सम्पूर्ण स्नेह का अभाव होने से क्षुधा की बाधा नहीं हो सकती है। यदि ऐसा आप कहें कि मिथ्यादृष्टि से लेकर सयोगकेवली पर्यन्त तेरह गुणस्थानवत जीव आहारक होते हैं, ऐसा आहार मार्गणा के सम्बन्ध में आगम में कहा हुआ है, इस कारणा से केदलियों के आहार है, ऐसा मानना चाहिये । सो ठीक नहीं है, ऐसा मानना चाहिये। सो ठीक नहीं है क्योंकि निम्न गाया के अनुसार आहार छः प्रकार का होता है
"पोक मकम्हारी कवलाहारो य लेप्यमाहारो । ओजमणो वि य कमसो आहारो छन्दिहो गेयो ॥ २ ॥
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भाव यह है कि आहार छः प्रकार का होता है, जैसे-कर्म का आहार, कर्मों का आहार, ग्रासरूप कवलाहार, लेपका आहार, ओज आहार तथा मानसिक आहार । आहार उन परमाणुओं के ग्रहण को कहते हैं जिनसे शरीर को स्थिति रहे । आतक वर्गणा का शरीर में प्रवेश सो नोकर्म का आहार है । जिन परमाणुओं के समूह से देवों का, नारकियों का, मनुष्य या तिथंचों का वैक्रियिक, औदारिकशरीर और मुनियों के आहारकशरीर बनता है उसको आहारक वर्गणा कहते हैं । कार्माण वर्गणा के ग्रहण को कर्म आहार कहते हैं। इन्हीं वर्गणाओं से कर्मों का सूक्ष्मशरीर बनता है। अन्न, पानी आदि पदार्थों को मुंह चलाकर खाना-पीना कबलाहार है। यह साधारण मनुष्यों के व द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के पशुओं के होता है। स्पर्श से शरीर पुष्टिकारक पदार्थों को ग्रहण करना सो लेप आहार है । यह पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा वनस्पति कायधारी एकेन्द्रिय जोयों के होता है । अंडों को माता सेती है उससे गर्मी पहुंचाकर अण्डों को पकना सो ओज आहार है । भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिषी तथा कल्पवासी इन चार प्रकार के देवों के मानसिक आहार होता है । इनके वैक्रियिक दिव्यशरीर होता है, जिसमें हाड़, मांस, रुधिर नही होता है, इसलिये इनके कवलाहार नहीं हैं, यह मांस व अन्न नहीं खाते हैं । देवों के जब कभी भूख की बाधा होती है तो उनके कण्ठ में से अमृतमयी रस झर जाता है उससे ही उनकी भूख की बाधा मिट जाती है । नारकियों के कर्मों का भोगना यही आहार है तथा वे नरक की पृथ्वी की मिट्टी खाते हैं परन्तु उससे उनकी भूख मिटती नहीं है । इन छः प्रकार के आहारों में से केवली अरहंत भगवान् के मात्र नोकर्म्म का आहार है इस हो अपेक्षा से केवली भरहंतों के आहारकपना जानना चाहिये, कवलाहार की अपेक्षा से नहीं । सूक्ष्म इन्द्रियों के अगोचर, रस वाले सुगन्धित अन्य मनुष्यों के लिए असम्भव, कवलाहार के बिना भी कुछ कम कोटि
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