________________
७४ ]
पवयणसारो सर्व द्रव्य क्षेत्र-काल-भावों से [सर्व ] सब ज्ञेयों को [निरवशेष] निरवशेष [पश्यति जानाति] देखते-जानते हैं।
टीका—वह आत्मा वास्तव में, स्वभाव से ही परद्रव्य के ग्रहण त्याग का तया परद्रव्य रूप के परिणत होने का (उसके) अभाव होने से, स्वतत्त्वभूत केवलज्ञान स्वरूप से परिणत होकर (तथा) निष्कंप निकलने वाली ज्योति बाला उत्तम मणि जैसा होकर रहता हआ, (एवं) जिसके सब आत्म-प्रदेशों से दर्शन ज्ञान शक्ति स्फुरित है, ऐसा होता हुआ, निःशेष रूप से परिपूर्ण आत्मा को आत्मा से आत्मा में संचेतता (जानता-अनुभव करता) है।
__ अथवा एक साथ ही सर्व पदार्थों के समूह को साक्षात् करने से, ज्ञप्ति परिवर्तन का अभाव होने से, (तथा) जिसके ग्रहण त्याग रूप किया विराम को प्राप्त हई है ऐसा होता हा, (एवं) पहले समय में ही समस्त ज्ञेयाकार रूप परिणत होने से, फिर दूसरे आकारान्तर रूप नहीं परिणत होता हुआ, सर्व प्रकार से सम्पूर्ण विश्व को देखता जानता है।
__ सार—इस प्रकार (पूर्वोक्त दोनों प्रकार से) उसका (आत्मा का पदार्थों से) अत्यन्त भिन्नपना ही है।
तात्पर्यवृत्ति ___ अथ ज्ञानिनः पदार्थैः सह यद्यपि व्यवहारेण ग्राह्यग्राहकसम्बन्धोऽस्ति तथापि संश्लेषादिसम्बन्धो नास्ति, तेन कारणेन ज्ञेयपदार्थैः सह भिन्नत्वमेवेति प्रतिपादयति,
गेहदि णेव ण मुचवि गृह्वाति नैव मुञ्चति नैवण पर परिणमदि परं परद्रव्यं शेयपदार्थ नैव परिणमति । स कः फर्ता ? केवली भगवं केवली भगवान् सर्वशः । ततो ज्ञायते परद्रव्येण सह भिन्नत्वमेव तहि कि परद्रव्यं न जानाति ? पेच्छवि समंतदो सो जाणदि सब णिरयसेसं तथापि व्यवहारनयेन पश्यति समन्ततः सर्वद्रव्यक्षेत्रकालभाव नाति च सर्व निरवशेषम् । अथवा द्वितीयव्याख्यानम्अभ्यन्तरे कामक्रोधादि बहिर्विषये पञ्चेन्द्रियविषयादिकं बहिद व्यं न गृह्णाति, स्वकीयानन्तज्ञानादिचतुष्टयं च न मुञ्चति यतस्ततः कारणादयं जीवः केवलज्ञानोत्पत्तिक्षण एव युगपत्सर्वं जानन्सन् पर विकल्पान्तरं न परिणमति । तथाभूतः सन् किं करोति ? स्वतत्वभूतकेवलज्ञानज्योतिषा जात्यमणिकल्पो निःकम्पचैतन्य प्रकाशो भूत्वा स्वात्मानं स्वात्मनि जानात्यनुभवति । तेनापि कारणेन परद्रव्यः सह भिन्नत्वमेवेत्यभिप्रायः ।। ३२।।।
एवं ज्ञानं शेयरूपेण न परिणमतीत्यादिव्याख्यानरूपेण तृतीयस्थले गाथापञ्चकं गतम् ।
उत्थानिका-आगे यह समझाते हैं कि यद्यपि व्यवहार से ज्ञानी का ज्ञेय पदार्थो के साथ ग्राह्य-ग्राहक अर्थात् ज्ञेय-ज्ञायक सम्बन्ध है तथापि निश्चय से स्पर्श आदि का सम्बन्ध नहीं है इसलिये ज्ञानी का ज्ञेय पदार्थों के साथ भिन्नुपना ही है ।