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। पवयणसारो
तो ऐसा सिद्ध होगा कि उत्पाद अन्य है, व्यय अन्य है, ध्रौव्य अन्य है। (अर्थात् तीनों पृथक्-पृथक् हैं, ऐसा मानने का प्रसंग आजायगा ।) ऐसा होने पर (क्या दोष आता है, सो समझाते हैं)-केवल उत्पाद-अन्येषक को कुंभ की (व्यय और ध्रौव्य से भिन्न मात्र उत्पाद को जानने वाले व्यक्ति को कुंम की), उत्पादन के (उत्पत्ति के कारण का अभाव होने से, उत्पत्ति ही नहीं मिलेगी, अथवा असत् का ही उत्पाद होगा। और वहां, (१) यवि कुम्भ की उत्पत्ति न होगी तो समस्त ही भावों की उत्पत्ति ही न होगी। (अर्थात् जैसे कुम्भ को उत्पत्ति नहीं होगी, उसही प्रकार विश्व के किसी भी द्रव्य में किसी भी भाव का उत्पाद नहीं होगा, यह दोष आयगा), अथवा (२) यवि असत् का उत्पाद हो, तो आकाश के पुष्प इत्यादि का भी उत्पाद होगा, (अर्थात् शून्य में से पदार्थ उत्पन्न होने लगेगे,--यह दोष आएगा।) और, केवल व्यय को आरम्भ करने वाले (उत्पाद और प्रौव्य से रहित केवल व्यप करने को उद्यत) मृतपिण्ड का, व्यय के कारण का अभाव होने से, व्यय ही नहीं होगा, अथवा सत् का ही उच्छेद होगा। वहीं, (१) यदि मृत्पिण्डका व्यय न होगा तो समस्त ही भावों का व्यय ही नहीं होगा, (अर्थात् जसे मृत्तिकापिण्डका व्यय नहीं होगा उसी प्रकार विश्व के किसी भी द्रव्य में किसी भी भाव का व्यय ही नहीं होगा,-यह दोष आएगा), अथवा (यदि सत् का उच्छेद होगा तो चैतन्य इत्यादि का भी उच्छेद हो जाएगा, (अर्थात् समस्त द्रव्यों का सम्पूर्ण नाश हो जायेगा, यह दोष आयगा ।) और केवल प्रौव्य को प्राप्त करने को जाने वाली मृत्तिका का, व्यतिरेक सहित ध्रौव्य का अन्वय (मृत्तिका) अभाव होने से, धौन्य ही नहीं होगा, अथवा क्षणिक का ही नित्यत्व आजायगा। यहां (१) मृत्तिका का धौन्य न हो तो समस्त ही भावों का प्रौव्य ही नहीं होगा, (अर्थात् यदि मिट्टी ध्रुव न रहे तो मिट्टी की ही भांति विश्व का कोई भी द्रव्य ध्रुव ही नहीं रहेगा-यह दोष आयगा ।) अथवा (२) यदि क्षणिक का नित्यत्व हो तो चित्त के क्षणिक-भावों का भी नित्यत्व होगा, (अर्थात् मन का प्रत्येक विकल्प भी कालिक ध्रुव हो जाय यह बोष आयेगा।) इसलिये उत्तर उत्तर व्यतिरेकों की उत्पत्ति के साथ, पूर्व पूर्व व्यतिरेकों के संहार के साथ और अन्वय के अवस्थान (ध्रौव्य) के साथ अविनाभाव वाला, जिसका निविघ्न (अवाधित) त्रिलक्षणतारूप चिह्न प्रकाशमान है, ऐसा द्रव्य अवश्य मानने योग्य है ॥१०॥