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पवयणसारो ]
[ ४८५ नाहं भवामि परेषां न मे परे नास्ति ममेह किंचित् ।
इति निश्चिता जितेन्द्रियः जातः प्रथाजातरूपधरः ।।२०४॥ ततोऽपि श्रामण्यार्थी यथाजातरूपधरो भवति । तथाहि--अहं तावन्न किचिदपि परेषा भवामि परेऽपि न किंचिदपि मम भवन्ति, सर्वद्रयाणां परैः सह तत्त्वतः समस्तसंबन्धशून्यत्वात् । तदिह षडद्रव्यात्मके लोके न मम किचिवष्यात्मनोऽन्यदस्तीति निश्चितमतिः परद्रव्यस्वस्वामिसंबन्धनिबंधनानामिन्द्रियनोइन्द्रियाणां जयेन जितेन्द्रियश्च सन् धृतयथानिष्पन्नात्मद्रव्यशुद्धरूपत्वेन यथाजातरूपधरो भवति ॥२०४॥
भूमिका और फिर वह क्या करता है, सो उपदेश करते हैं
अन्वयार्य-[अहं] मैं [परेषां] दूसरों का [न भवामि] नहीं है [परे मे न] पर मेरे नहीं हैं, [इह] इस लोक में [मम] मेरा [किंचित् ] कुछ भी [न अस्ति नहीं है,- [इति निश्चित:] ऐसा निश्चय करके और [जितेन्द्रियः] जितेन्द्रिय होता हुआ [ यथाजातरूपधरः] यथाजातरूपधारी [जात:] होता है।
टीका-तत्पश्चात् श्रामण्यार्थी यथाजातरूपधारी होता है इस प्रकार कि-'प्रथम तो मैं किंचित्मात्र भी परका नहीं हूँ, पर भी किचित्मात्र मेरे नहीं हैं, क्योंकि समस्त द्रव्य निश्चयनय से परके साथ समस्त संबंध रहित हैं, इसलिये इस षड्दध्यात्मक लोक में आत्मा से अन्य कुछ भी मेरा नहीं है,--इस प्रकार निश्चित मतियाला, परद्रव्यों के साथ स्व-स्वामि सम्बन्ध जिनका आधार है, ऐसी इन्द्रियों और नोइन्द्रिय के जय से जितेन्द्रिय होता हुआ आत्मद्रव्य के (यतिधर्म के) यथानिष्पन्न शुद्धरूप धारण करने से ययाजातरूपधारी होता है ॥२०४॥
तात्पर्यवृत्ति अथ गुरुणा स्वीकृत: सन कीदृशो भवतीत्युपदिशति;
णाहं होमि परेसिं नाहं भवामि परेषाम् । निज़शुद्धात्मनः सकाशात्परेषां भिन्नद्रव्याणां सम्बन्धी न भवाम्यहम् । ण मे परे न मे सम्बन्धीनि परद्रव्याणि णस्थि मज्झमिह किचि नास्ति ममेह किञ्चित् । इह जगति निजशुद्धात्मनो भिन्न किंचिदपि परद्रव्यं मम नास्ति इदि णिन्छिदो इति निश्चितमतिर्जातः जिदिवो जादो इन्द्रियमनोजनितविकल्पजालरहितानन्तज्ञानादिगुणस्वरूपनिजपरमा. स्मद्रव्याद्विपरीतेन्द्रियनोइन्द्रियाणां जयेन जितेन्द्रियश्च संजातः सन् जधजादरूबधरो यथाजातरूपधरः व्यवहारेण नग्नत्वं यथाजातरूपं निश्चयेन तु स्वात्मरूपं तदित्यंभूतं यथाजातरूपं धरतीति यथाजातरूपधरः निर्ग्रन्थो जात इत्यर्थः ।।२०४।।
उत्थानिका-आगे गुरू द्वारा स्वीकार किये जाने पर वह जिस प्रकार के स्वरूप का धारी होता है उसका उपदेश करते हैं