Book Title: Pravachansara
Author(s): Kundkundacharya, Shreyans Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 673
________________ पवयणसारो ] | ६४५ शून्यनयेन शून्यागारयत् केवलोद्भासि ||२२|| अशून्यनयेन लोकाक्रान्तनौबन्मिलितोद्भासि ॥ २३॥ ज्ञानयाद्वैतनयेन महदिन्धनभारपरिणतधूमकेतुववेकम् ||२४|| ज्ञानयद्वैतनयेन परप्रतिविम्बसंपृक्तवर्पणवदनेकम् ||२५|| नियतिनयेन नियमितोष्णयवह्निव नितम्वभावभासि ||२६|| अनियतिनयेन नियत्यनियमित ौष्ण्यपानीयवदनियतस्य भावभासि ॥२७॥ स्वभावनयेन निशिततीक्ष्णकण्टकवत्संस्कारानर्थक्यआत्मद्रव्य शून्यनय से शून्य (खाली) घर की भांति, एकाकी (अमिलित) भासिस होता है ||२२|| , आत्मद्रव्य अशुन्यनय से, लोगों से भरे हुये जहाज की भांति मिलित मासित होता है ||२३|| आत्मद्रव्य ज्ञानज्ञेय अद्वैतनय से (ज्ञान और ज्ञेय के अद्वैतरूपस्य से) महान् ईन्धनसमूहरूप परिणत अग्नि की भांति, एक है ज्ञानाकार और ज्ञेयाकार दोनों स्वरूप होने से अद्वैत है, इसलिये एक है ॥२४॥ आत्मद्रव्य ज्ञान ज्ञेय इंतनय से, परके प्रतिबिंबों से संपृक्त दर्पण को भांति, अनेक है अर्थात् आत्मा में ज्ञेय प्रतिभासित होते हैं । उन ज्ञेयों के प्रतिबिंब की अपेक्षा आत्मा अनेक है, जैसे पर- प्रतिबिम्बों के संगवाला वर्पण अनेकरूप है ||२५|| आत्मद्रव्य नियतिनय से निघतस्वभाव रूप भासित होता है, जिसकी उष्णता नियमित (नियत) होती है ऐसी अग्नि की भांति । आत्मा नियतिनय से नियत स्वभाव वाला भासित होता है, जैसे अग्नि के उष्णता का नियम होने से अग्नि नियतस्वभाव वाली भासित होती है । उसी प्रकार आत्मा के चैतन्य का नियम होने से आत्मा नियत स्वभाव बाली है ||२६|| आत्मद्रव्य अनियतनय से अनियतस्वभावरूप भासित होता है, जिसके उष्णता नियति (नियम) से नियमित नहीं है, ऐसे पानी की भांति आत्मा अनियतिनय से अनियंतिस्वभाव वाला भासित होता है जैसे पानी के (अग्निनिमित्तक) उष्णता अनियत होने से पानी अनियत स्वभाव वाला भासित होता है । पानी अग्नि का निमित्त मिले तो उष्ण हो जावे निमित्त न मिले तो उष्ण न हो विवक्षित जल के विवक्षित क्षेत्र च विवक्षित काल में विवक्षित अग्नि के द्वारा उष्ण होना नियत नहीं है। इस प्रकार आत्मा की नैमित्तिक पर्यायें व उनका क्षेत्र व काल नियत नहीं है, अनियत है ॥२७॥ आत्मद्रव्य स्वभावनय से संस्कार को निरर्थक करने वाला है ( अर्थात् आत्मा को स्वभाव नय से संस्कार निरुपयोगी है), जिसकी किसी से नोक नहीं निकाली जाती ( किन्तु जो स्वभाव से ही नुकीला है) ऐसे पंने काँटे की भांति । आत्मा स्वभाव से परिणमनशील होने से संस्कारों को निरर्थक करने वाला है ॥२८॥

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