Book Title: Pravachansara
Author(s): Kundkundacharya, Shreyans Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 657
________________ पवयणसारो ] [ ६२६ अयथाचारवियुक्तो यथार्थ पदनिश्चितः प्रशान्तात्मा। अफले चिरं न जीवति इह स संपूर्णश्रामण्यः ।।२७२।। यस्त्रिलोकचूलिकायमाननिर्मलविवेकदीपिकालोकशालितया यथावस्थितपदार्थनिश्चयनिवसितौत्सुक्यस्वरूपमन्यरसततोपशान्तात्मा सन् स्वरूपकमेवामिमुख्येन चरन्नयथाचारवियुक्तो नित्यं ज्ञानी स्यात् स खलु संपूर्णश्रामण्यः साक्षात् श्रमणो हेलावकीर्णसालप्राक्तनकर्मफलत्वादनिष्पादितनूतनकर्मफलत्वाच पुनः प्राणधारणदैन्यमनस्कन्दन द्वितीयभायपरावर्ताभावात् शुद्धस्वभावावस्थितत्तिर्मोक्षतत्त्वमवबुध्यताम् ॥२७२॥ भूमिका-अब मोक्ष तत्व को प्रगट करते हैं। अन्वयार्थ--[यथार्थपद निश्चितः] जो यथार्थतया पदों का तथा अर्थों (पदार्थों) का निश्चय करने वाला है [प्रशान्तात्मा) प्रशांतात्मा है और [अयथाचारवियुक्तः] अयथाचार से रहित है [सः संपूर्णश्रामण्य:] वह संपूर्ण श्रामण्यवाला जीव [इह अफले] इस अफल (असार) संसार में [चिरं न जीवति] चिरकाल तक नहीं रहता (अल्पकाल में ही मुक्त होता है)। टीका-जो (श्रमण) त्रिलोक की चूलिका के समान निर्मल विवेकरूपी बीपिका के प्रकाश द्वारा यथास्थित पदार्थनिश्चय से उत्सुकता को दूर करके स्वरूप में स्थिति से सतत 'उपशांतात्मा' वर्तता हुआ, एक स्वरूप में ही अभिमुखतया कीड़ा करने से 'अयथाचार रहित' वर्तता हुआ नित्यज्ञानी है, वास्तव में उस सम्पूर्ण श्रामण्य वाले साक्षात् श्रमण को मोक्षतत्त्व जानना, क्योंकि पहले के सकल कर्मों के फल उसने लीलामात्र से नष्ट कर दिये हैं और नूतन कर्म फलों को उत्पन्न नहीं करता इसलिये पुनः प्राण धारणरूप दीनता को प्राप्त न होता हआ द्वितीय भावरूप परावर्तन के अभाव के कारण शुद्ध स्वभाव में 'अवस्थित वृत्ति वाला है ॥२७२।। उक्त गाथा में अरहंत अवस्था का कथन है तात्पर्यवृत्ति अथ मोक्षस्वरूप प्रकाशयति;-- अजधाचारविजुत्तो निश्चयव्यवहारपंचाचारभावनापरिणतत्वादयधाचारवियुक्त: विपरीताचाररहित इत्यर्थः । जबस्थपदणिच्छिदो सहजानन्दैकस्वभावनिजपरमात्मादिपदार्थपरिज्ञानसहितस्वाद्यथार्थपदनिश्चित: पसंतप्पा विशिष्टपरमोपशम भावपरिणतनिजात्मद्रव्यभावनासहितत्वात्प्रशान्तात्मा जो यः कर्ता सो संपुण्णसामाणो स सम्पूर्णश्रामण्य: सन् चिरं ण जीवदि चिरं बहुतरकालं न १. अवस्थित-स्थिर, इस सम्पूर्ण श्रामण्य वाले जीव को अन्य भावरूप परावर्तन (पलटन) नहीं होता, बह सदा एक ही भाव रूप रहता है-शुद्ध स्वभाव में स्थिर परिणति रूप से रहता है, इसलिये वह जीव मोक्षतत्व ही है।

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