Book Title: Pravachansara
Author(s): Kundkundacharya, Shreyans Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 591
________________ पवयणसारो ] [ ५६३ सर्वे आगमसिद्धा अर्था गुणपर्यायश्चित्रैः । जानन्त्यागमेन हि दृष्ट्वा तानपि ते श्रमणाः ॥२३५11 आगमेन तावत्सर्वाण्यपि द्रव्याणि प्रमीयन्ते, विस्पष्टतर्कणस्य सर्वद्रव्याणामविरुबत्वात् । विचित्रगुणपर्यायविशिष्टानि च प्रतीयन्ते, सहक्रमप्रवृत्तानेकधर्मध्यापकानेकान्तमयत्वेनैवागमस्य प्रमाणत्वोपपत्तेः । अतः सर्वेऽर्था आगमसिद्धा एष भवन्ति । अय ते श्रमणानां शेयत्वमापद्यन्ते स्वयमेव, विचित्रगुणपर्यायविशिष्टसर्थद्रथ्यध्यापकानेकान्तात्मकश्रुतशानोपयोगीभूय विपरिणमनात् । अतो न किंचिदप्यागमचक्षुषामदृश्यं स्यात् ॥२३॥ भूमिका-अब, यह समर्थन करते हैं कि आगमरूप चक्षु से सब ही दिखाई बेता है ___अन्वयार्थ-[चित्रः गुणपर्यायः] विचित्र (अनेक प्रकार की) गुणपर्यायों सहित [सर्वे अर्था:] समस्त पदार्थ [आगमसिद्धाः] आगमसिद्ध हैं। तान् अपि] उन्हें भी | ते श्रमणाः वे श्रमण [आगमेन हि दृष्ट्वा ] आगम' द्वारा वास्तव में देखकर [जानन्ति] जानते हैं। ____टोका-प्रथम तो, आगम द्वारा सभी द्रव्य प्रमेय (ज्ञेय) होते हैं, क्योंकि सर्वद्रव्य बिस्पष्ट सर्कणा से अविरुद्ध हैं, और फिर, आगम से वे द्रव्य विचित्र गुणपर्यायवाले प्रतीत होते हैं, क्योंकि आगम को सहप्रवृत्त और क्रमप्रवृत्त अनेक धर्मों में व्यापक अनेकान्तमय होने से प्रमाणता की उपपत्ति है (अर्थात् आगम प्रमाणभूत सिद्ध होता है)। इससे सभी पदार्थ आगम सिख ही हैं और वे श्रमणों को स्वयमेव ज्ञेयभूत होते हैं, क्योंकि श्रमण विचित्र गुण पर्याय वाले सवंद्रव्यों में व्यापक अनेकान्तात्मक श्रुतज्ञानोपयोग रूप होकर परिणमित होते हैं । इससे यह कहा है कि आगम रूप चक्षु वालों को कुछ भी अदृश्य नहीं है ॥२३५॥ तात्पर्यवृत्ति अथागमलोचनेन सर्वं दृश्यत इति प्रज्ञापयति सवे आगमसिद्धा सर्वेऽप्यागमसिद्धा आगमेन ज्ञाताः । के ते? अस्था विशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावो योऽसौ परमात्मपदार्थस्तत्प्रभृतयोऽर्थाः । कथं सिद्धाः ? गुणपज्जएहि चित्तेहि विचित्रगुणपर्यायः सह । जाणंति जानन्ति । कान् ? तेवि तान् पूर्वोक्तार्थगुणपर्यायान् । किंकृत्वा पूर्व ? पेच्छित्ता दृष्टा ज्ञात्वा । केन ? आगमेण य आगमेनैव । अयमन्त्रार्थः–पूर्वमागमं पठित्वा पश्चाज्जानन्ति ते समणा ते श्रमणा भवन्तीति । अत्रेदं भणितं भवति-सर्वे द्रव्यगुणपर्याया: परमागमेन ज्ञायन्ते। कस्मात् ? आगमस्य परोक्षरूपेण केवलज्ञानसमानत्वात्, पश्चादागमाधारेण स्वसंवेदनज्ञाने जाते स्वसंवेदनज्ञानबलेन केबलजाने च जाते प्रत्यक्षा अपि भवन्ति । ततः कारणादागमचक्षुषा परंपरया सर्व दृश्यं भवतीति 11२३५॥ एवमागमाभ्यासकथनरूपेण प्रथमस्थले सूत्रचतुष्टयं गतम् ।

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