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पघयणसारो
उत्थानिका-आग कहते हैं कि आगम के लोचन से सर्व दिखता है
अन्वय सहित विशेषार्थ(चिसेहि गुणपज्जएहि) नाना प्रकार गुण पर्यायों के साथ (सब्वे अत्था) सर्व पदार्थ (आगम सिद्धा) आगम से सिद्ध हैं। (आगमेण) आगम के द्वारा (तेवि) उन सबको (हि पेच्छित्ता) यथार्थ देखकर (जाणंति) जो जानते हैं (ते समणा) वे ही साधु हैं। विशुद्ध ज्ञानदर्शन स्वभावधारी परमात्मपबार्थ को लेकर सर्व ही पधार्थ तथा उनके सर्व गुण और पर्याय परमागम के द्वारा जाने जाते हैं, क्योंकि परोक्ष रूप आगम केवलज्ञान के समान है। आगम द्वारा पदार्थों को जान लेने पर जब स्वसंवेदन ज्ञान पैदा हो जाता है तब उस स्वसंवेदन के बल से जब केवलज्ञान पैदा होता है तब धे ही सर्व पदार्थ प्रत्यक्ष हो जाते हैं । इसलिये आगम-चक्षु के द्वारा परम्परा से सर्व हो प्रत्यक्ष दीख जाता है ॥२३॥
भावार्थ-श्री समंतभद्राचार्य आप्तमीमांसा में स्यावाद को केवल ज्ञान के समान बताते हैं, जैसे
स्याद्वारकेवलज्ञाने सर्वतत्वप्रकाशने । भेदः साक्षावसाक्षाच्च गवस्त्वन्यतमं भवेत् ॥१५॥
अर्थात् स्याद्वाद और केवलज्ञान में सर्व तत्वों के प्रकाशने को अपेक्षा समानता है, केवल प्रत्यक्ष और परोक्ष का ही भेव है। यदि दोनों में से एक न होय तो वस्तु ही न रहे । ओ पदार्थ केवलज्ञान से प्रगट होते हैं उन सबको परोक्ष रूप से शास्त्र बताता है। इसलिये सर्व द्रव्य गुण पर्यायों को दोनों बताते हैं—केवलज्ञान न हो तो स्याद्वावमय श्रुत ज्ञान न हो और यदि स्यादवावमय श्रुतज्ञान न हो तो केवलज्ञान नहीं होता।
इस तरह आगम के अभ्यास को कहते हुए प्रथम स्थल में चार सूत्र पूर्ण हुए।
अथागमज्ञानतत्पूर्वतत्त्वार्थश्रद्धानतदुभयपूर्वसंयतत्त्वानां योगपद्यस्य मोक्षमार्गत्वं नियमयति
आगमपुव्वा विट्ठी ण हवदि जस्सेह संजमो तस्स । पत्थीदि भणदि सत्तं असंजदो होवि किध' समणो ॥२३६।।
आगमपूर्वा दृष्टिर्न भवति यस्येह संयमस्तस्य ।
नास्तीति भणति सूत्रमसंयतो भवति कथं श्रमणः ।।२३६।। इह हि सर्वस्यापि स्यात्कारकेतनागमपूर्विकया तत्त्वार्थश्रद्धानलक्षणया दृष्टया शून्यस्य स्वपरविभागामावात कायकवायः सहैक्यमध्यवसतोऽनिरुद्धविषयाभिलाषतया षड्
१. किह (ज० वृ०)।