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। पवयणसारो किविशिष्टाः ? तस्समाचारा तासां स्त्रीणां योग्यस्तद्योग्य आचारशास्त्रविहिःतसमाचार आचार आचरणं यासां तास्तत्समाचारा इति ।।२२४-६।।
उत्थानिका-आगे इस विषय को संकोचते हुए स्त्रियों की व्रतों में क्या स्थिति है उसे समझाते हैं
अन्वय सहित विशेषार्थ-(तम्हा) इसलिये (सासि लिंग) उन स्त्रियों का चिन्ह या भेष (तं पशिलवं) वस्त्र सहित (जिहि णिद्दि) जिनेंद्रों ने कहा है । (कुलरूववओजुत्ता) कुल, रूप, वय सहित (तस्समाचारा) जो उनके योग्य आचरण हैं उनको पालने वाली (समणीओ) अजिकाएं होती हैं । क्योंकि स्त्रियों को उसी भव से मोक्ष नहीं होता है, इसलिये सर्वज्ञ जिनेन्द्र भगवान ने उन आयिकाओं का लक्षण या चिह्न वस्त्र आच्छादन सहित कहा है। उनका कुल लौकिक में घणा के योग्य नहीं, ऐसा जिनदीक्षा योग्य कुल हो। उनका स्वरूप ऐसा हो कि जो बाहर में भी विकार से रहित हो तथा अन्तरंग में भी उनका चित्त निविकार व शुद्ध हो तथा उनकी वय या अवस्था ऐसी हो कि शरीर में जीर्णपना या भंग न हुआ हो, न अति बाल हों, न युद्ध हों, न बुद्धि-रहित मूर्ख हों, आचार शास्त्र में उनके योग्य जो आचरण कहा गया है उसको पालने वाली हों, ऐसी आयिकाएं होनी चाहिये ॥२२४-६॥ अथेदानी पुरुषाणां दीक्षाग्रहणे वर्णव्यवस्थां कथयति
वण्णेसु सीसु एक्को कल्लाणंगो तबोसहो वयसा ।
सुमुहो कुच्छारहिवो लिगग्गहणे हदि जोग्गो ॥२२४-१०॥ वणेसु तीसु एक्को वर्णेषु त्रिस्वेक: ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यवर्णेष्वेक: कल्लाणंगो कल्याणाङ्ग आरोग्यः तवोसहो वयसा तपःसहः तपःक्षमः । केन ? अतिवृद्धबालत्वरहितवयसा सुमुहो निर्विकाराभ्यन्तरपरमचैतन्यपरिणतिविशुद्धिज्ञापकं गमकं बहिरङ्गनिर्विकारं मुखं यस्य मुखाक्यवभङ्गरहितं वा स भवति सुमुखः कुच्छारहिदो लोकमध्ये दुराचाराद्यपवादरहितः लिंगाहणे हवदि जोग्गो एवं गुणविशिष्टपुरुषो जिनदीक्षाग्रहणे योग्यो भवति । यथायोग्यं सच्छूद्राद्यपि ।।२२४-१०।।
उत्थानिका-आगे कहते हैं कि जो पुरुष दीक्षा लेते हैं उनकी वर्ण व्यवस्था क्या होती है।
अन्वय सहित विशेषार्थ-(तीस वणेसु एक्को) तीन वर्षों में से एक वर्ण वाला (कल्लाणंगो) आरोग्य शरीर धारी, (तवोसहो) तपस्या को सहन करने वाला, (वयसा सुमुहो) बावस्था से सुन्दर मुख वाला तथा (कुच्छारहिवो) अपवाद रहित (लिंगरगहणे जोगो हवदि) पुरुष साधु भेष के लेने योग्य होता है। जो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तीन वर्गों