________________
३२६ ]
[ पवयणसारो
लिङ्गानि मूर्तामूर्तगुणा ज्ञेया ज्ञातव्याः । ते च कथम्भूताः ? अतन्मावविसिट्ठा अतद्भावविशिष्टाः । तद्यथा-शुद्धजीवद्रव्ये ये केवलज्ञानाविास्तेषां शुद्धीवत्रदेश सह यकत्वमा भन्नत्वं तन्मयत्वं स तद्भावो भण्यते, तेषामेव गुणाना तैः प्रदेशैः सह यदा संज्ञालक्षणप्रयोजनादिभेदः क्रियते तदा पुनरतद्भावो भण्यते, तेनातद्भावेन संज्ञादिभेदरूपेण स्वकीयस्वकीयद्रव्येण सह विशिष्टा भिन्ना इति, द्वितीयव्याख्यानेन पुनः स्वकीयद्रव्येण सह तद्भावेन तन्मयत्वेनान्यद्रव्यादिविशिष्टा भिन्ना इत्यभिप्रायः ।।१३।।
एवं गुणभेदेन द्रव्यभेदो ज्ञातव्यः । उत्थानिका-आगे ज्ञानादि विशेष गुणों के भेद से द्रव्यों के भेदों को बताते हैं
अन्वय सहित विशेषार्थ-(जेहि लिगहि) जिन चेतन अचेतन लक्षणों से (जीवमजीवं बब्वं) जीव और अजीव द्रध्य (विण्णादं हवदि) जाने जाते हैं (ते) वे लक्षण या चिह्न (अभावविसिठ्ठा) यद्यपि वे लक्षण या चिन्ह संज्ञा आदि की अपेक्षा अतवभाव विशिष्ट (भिन्न) हैं तथापि प्रदेश अभिन्न होने से उनके साथ तन्मयता को रखने वाले हैं (मुत्ता. मुत्ता गुणा) वे चेतन और अचेतन मूर्तिक और अमूर्तिक गुण वाले हैं (णेया) ऐसा जानना चाहिये। स्वाभाविक शद्ध परम चैतन्य के विलासरूप विशेष गुणों से जीव द्रव्य तथा अचेतन या जड़रूप विशेष गुणों से अजीव द्रव्य पहचाने जाते हैं। ये चेतन तथा अचेतन गुण अपने-अपने द्रव्य से तन्मय हैं। जैसे शुद्ध जीव व्रज्य में जो केवलज्ञान आदि गुण हैं उनकी शुद्ध जीव के प्रदेशों के साथ जो एकता, अभिन्नता तथा तन्मयता है उसको तनाव कहते हैं। इस तरह शुद्ध जीव द्रव्य अपने प्रदेशों की अपेक्षा अपने शुद्ध गुणों से तन्मय है परन्तु जब गुणों का और उन प्रदेशों का जहां वे गुण पाए जाते हैं संज्ञा, लक्षण, प्रयोजन आदि से भेव किया जाता है तम गुण और द्रव्य में अतद्भावपना या भेवपना भी सिद्ध होता है। बच्य और गुण किसी अपेक्षा अभेदरूप व चिसो अपेक्षा भेदरूप हैं। अथवा दूसरा व्याख्यान यह है कि जिस द्रव्य के जो विशेष गुण हैं वे अपने द्रध्य से तवभाव रूप या तन्मय हैं परन्तु अन्य द्रव्यों से वे अतद्भाव रूप या भिन्न हैं । ये चेतन अचेतन मूर्तिक और अमूर्तिक गुण वाले हैं, ऐसा समझना चाहिये ॥१३०॥
इस तरह गुणों के भेव से द्रव्य का भेव जानना चाहिये । अथ मूर्तामूर्तगुणानां लक्षणसंबन्धमाख्याति
मुत्ता इंदियगेज्झा पोग्गलदव्वप्पगा अणेगविधा' ।
वव्वाणममुत्ताणं गुणा अमुत्ता मुणेदव्या ॥१३१।। १. अणेविा (ज. ३०)।