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पवयणसारो 1
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भूमिका – अब मूर्त पुद्गल द्रव्य के गुण कहते हैं
अन्वयार्थ – [ सूक्ष्मात् पृथिवीपर्यन्तस्य पुद्गलस्य ] सूक्ष्म (परमाणु) से लेकर समस्त पुद्गल के [ वर्णरसगंधस्पर्शाः ] वर्ण, रस, गंध और स्पर्श ( गुण ) [ विद्यन्ते ] होते हैं; [चित्र: शब्द: ] जो विविध प्रकार का शब्द है [ सः ] वह [ वुद्गलः ] पुद्गल है | ( अर्थात् मुगल की पर्याय है ) |
टीका - स्पर्श, रस, गंध और वर्ण इन्द्रियग्राह्य हैं क्योंकि वे इन्द्रियों के विषय हैं । ये इन्द्रियग्राह्यता की व्यक्ति और शक्ति के यश से भले हो इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण किये जाते हों या न किये जाते हों तथापि वे एक द्रव्यात्मक सूक्ष्म पर्यायरूप परमाणु से लेकर अनेक अध्यात्मक स्थल पर्यायरूप पृथ्वीस्कंध तक के समस्त पुद्गल के अविशेषतया ( क्योंकि कोई भी पुद्गल ऐसा नहीं है जिसमें ये न पाये जायें अंतः साधारण रूप से या समस्त रूप से) विशेष गुणों के रूप में होते हैं (क्योंकि ये अन्य ब्रध्यों में नहीं हो सकते, अत: विशेष या असाधारण गुण हैं ।) और वे मूर्त होने के कारण से ही ( पुद्गल के अतिरिक्त) शेष द्रव्यों में न होने से, पुद्गल को बतलाते हैं (उसका ज्ञान कराते हैं) ।
ऐसी शंका नहीं करनी चाहिये कि शब्द भी इन्द्रियग्राह्य होने से गुण होगा, क्योंकि विचित्रता के द्वारा विश्वरूपत्व को ( अनेकानेक प्रकारत्व को ) प्राप्त उसके ( शब्द के ) अनेक द्रव्यात्मक पुद्गल - पर्यायता स्वीकार की गई है ( अर्थात् शब्द पुद्गलस्कंध की पर्याय है ) ।
यदि शब्द को ( पर्याय न मानकर ) गुण माना जाय, तो वह क्यों योग्य नहीं है,
उसका समाधान -
प्रथम तो, शब्द अमूर्त द्रव्य का गुण नहीं है, क्योंकि गुण गुणी में अभिन्न- प्रदेश व होने से तथा वे ( गुण-गुणी ) ( एक वेदन से देद्य-एक ही ज्ञान से ज्ञात होने योग्य होने से, अमूर्त द्रव्य के भी श्रवणेन्द्रिय की विषयभूतता आ जायगी । (दूसरे, शब्द में ) पर्याय के लक्षण से गुण का लक्षण उत्थापित ( खण्डित) होने से, शब्द मूर्त द्रव्य का गुण भी नहीं है। पर्याय का लक्षण कादाचित्कत्व (अनित्यत्व ) है और गुण का लक्षण नित्यत्य है, इसलिये ( शब्द को ) अनित्यत्व से नित्यत्व के उत्थापित होने से ( अर्थात् शब्द कभी-कभी ही होता है, अतः नित्य नहीं है, इसलिये ) शब्द गुण नहीं है । जो वहां नित्यत्व है, वह उसको ( शब्द को ) उत्पन्न करने वाले पुद्गलों का और उनके स्पर्शादिक गुणों का ही है, शब्द पर्याय का नहीं, , - इस प्रकार अतिदृढ़ता पूर्वक ग्रहण करना चाहिये ।