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[ पबयणसारो
___ अन्वयार्थ- [इन्द्रिय प्राणः च] इन्द्रिय प्राण [तथा बलप्राणः] बलपाण, [नथा च आयुप्राणः] आयुप्राण [च] और | आनपानप्राणः] श्वासोच्छ्वास प्राण, [ते | यह (चार) [जीवानां] जीवों के [प्राणाः] प्राण [ भवन्ति ] हैं ।
___टोका-स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र,-यह पांच इन्द्रियप्राण हैं, काय, वचन, और मन-यह तीन बलप्राण हैं, मनुष्यादि भव धारण का निमित्त आयुप्राण है, नीचे और ऊपर जाना जिसका स्वरूप है, ऐसी बायु (श्वास) श्वासोच्छ्वास प्राण है ॥१४६॥
तात्पर्यवत्ति
अथेन्द्रियादिप्राणचतुष्कस्वरूप प्रतिपादयति
इन्दियपाणो य तहा अतीन्द्रियानन्तसुखस्वभावादात्मनो विलक्षण इन्द्रियप्राणः बलपाणो तह य मनोवानकायच्यापाररहितात्मपरमात्मद्रव्याद्विसदशो बलप्राणः, आउपाणो य अनाद्यनन्तस्वभावास्परमात्मपदार्थाद्विपरीतः साद्यन्त आयुःप्राणः, आणप्पाणप्पाणो उच्छ्वासनिःश्वासजनितखेदरहिताचनद्धात्मतत्त्वात्प्रतिपक्षभूत आनपानप्राणः । जीवाणं होति पाणा एवमायुरिन्द्रियबलोच्छ्वासरूपेणाभेदनयेन जीवानां सम्बन्धिनश्चत्वारः प्राणा भवन्ति । ते ते च शुद्धनयेन जीवाद्भिन्ना भावयितव्या इति ।। १४६।।
उत्थानिका-आगे इन्द्रि आदि चार प्राणों का स्वरूप कहते हैं
अन्वय सहीत विशेषार्थ-(इन्वियपाणो) इन्द्रिय प्राण (य तहा) तथा (बलपाणो) बल प्राण (तह य) तैसे ही (आउपाणो) आयुप्राण (य) और (आणप्पाणप्पाणो) श्वासोच्छवास प्राण (ते पाणा) ये प्राण (जीवाणं) जीवों के (होंति) होते हैं।
विशेषार्थ--अतींद्रिय और अनन्त सुख के कारण न होने से इन्द्रियप्राण आत्मा के स्वभाव से विलक्षण हैं। मन, वचन, काय के व्यापार से रहित परमात्मद्रव्य से भिन्न बल प्राण है। अनादि और अनन्त स्वभावमयो परमात्मपदार्थ से विपरीत आदि और अंत सहित आधु प्राण है। श्वासोच्छ्वास के पैदा होने के खेद से रहित शुद्धात्मतत्व से विपरोत श्वासोच्छवास प्राण है। इस तरह आयु, इन्द्रिय, बल, श्वासोच्छ्वास के रूप से व्यवहारनय से जीवों के चार प्राण होते हैं। ये प्राण शुद्ध निश्चयनय से जीव से भिन्न हैं, ऐसी भावना करनी योग्य है ॥१४६॥ अथ ते एव प्राणा भेदनयेन दविधा भवन्तीत्यावेदयति,-..
पंचवि इन्दियपाणा मणवचिकाया य तिण्णि बलपाणा । आणप्पाणप्पाणो आउगपाण होति बसपाणा ||१४६॥१