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४०२ ]
[ पवयणसारो
क्रमाङ्क
गुणांश
सदृशबंध
विसदृशबंध
जघन्य+जघन्य
अजघन्य + अजघन्य
अजघन्य+सम+अजघन्य
अजघन्य + एकाधिक-अजघन्य
अजघन्य । द्वयधिक-अजघन्य
अजघन्य + त्यादि अधिक-अजघन्य
नहीं
___ इस तरह पूर्व में कहे प्रमाण स्निग्ध रूक्ष अवस्था में परिणत परमाणु का स्वरूप कहते हुए पहली गाया, धि सभामा बन गदते हुए गुलरी, स्निग्ध या रूक्ष गुण में दो अंश अधिक से बन्ध होगा ऐसा कहते हुए तीसरी तथा उसके हो दृढ़ करने के लिये चौथी इस तरह परमाणुओं के परस्पर बंध के व्याख्या की मुख्यता से पहले स्थल में चार गाथाएं पूर्ण हुई। अथात्मनः पुद्गलपिण्डकर्तृत्वाभावमवधारयति
दुपदेसादो खंधा सुहमा वा बादरा ससंठाणा । पुढविजलतेउवाऊ सगपरिणामेहिं जायते ॥१६७॥ द्विप्रदेशादयः स्वान्धाः सूक्ष्मा वा बादराः ससंस्थानाः।
पृथिवीजलतेजोवायवः स्वकपरिणामैर्जायन्ते ।।१६७।। एवममो समुपजायमाना द्विप्रदेशावयः स्कन्धा विशिष्टावगाहनशक्तिवशादुपात्तसौक्षम्य. स्थौल्यविशेषा विशिष्टाकारधारणशक्तिवशाद्गृहीतविचित्रसंस्थानाः सन्तो यथास्वं स्पर्शादिचतुष्कस्याविर्भावतिरोभावस्वाक्तिवशमासाच पृथिव्यप्तेजोवायवः स्वपरिणामरेव जापन्ते । अतोऽयधार्यते घणुकाधनन्तानन्तपुद्गलानां न पिण्डकर्ता पुरुषोऽस्ति ॥१६७॥
___ भूमिका-अब, आत्मा के, पुद्गलों के पिण्ड के कर्तृत्व का अभाव निश्चित करते हैं
अन्वयार्य-[द्विप्रदेशादयः स्कंधाः] द्विप्रदेशादिक (दो से लेकर अनन्तप्रदेश वाले) स्कंध [स्वकपरिणामः] अपने परिणामों से [सूक्ष्माः वा बादराः] सूक्ष्म अथवा बादर,