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[ पवयणसारो इससे (बुद्धिपूर्वक) पलटने रूप ध्यान-संतान नहीं सिद्ध होती है। अब ध्यानचिता को कहते हैं-जहां ध्यान की संतान की तरह ध्यान को पलटन नहीं है किन्तु ध्यान सम्बन्धी चिन्ता है। इस चिन्ता के बीच में ही किसी भी काल में ध्यान करने लगता है तो भी उसको ध्यानचिन्ता कहते हैं। अब ध्यानान्वयसूचना को कहते हैं कि जहाँ ध्यान की सामग्री रूप बारह भावना का चिन्तयन है यार सम्बन्धी संवेग वैराग्य वचनों का व्याख्यान है वह ध्यानान्वयसूचना है। ध्यान का चार प्रकार कथन ध्याता, ध्यान, ध्येय तथा फलरूप है, अथवा आर्त, रौद्र, धर्म, शुक्ल रूप है जिनका कथन अन्य ग्रन्थों में वर्णन किया गया है ॥१६६॥
- इस तरह आत्म-ध्यान से दर्शनमोह का क्षय होता है, ऐसा कहते हुए पहली गाथा, दर्शनमोह के क्षय से चारित्रमोह का क्षय होता है, ऐसा कहते हुए दूसरी, इन दोनों के क्षय से मोक्ष होता है ऐसा कहते हुए तीसरी, इस तरह आत्मा का लाभ होना फल होता है, ऐसा कहते हुए दूसरे स्थल में तीन गाथाएं पूर्ण हुई। अयोपलब्धशुद्धात्मा सकलज्ञानी कि ध्यायतीति प्रश्नमासूत्रयति
णिहदघणघाविकम्मो' पच्चक्खं सवभावतच्चण्हू । यंतगदो समणो झादि कमठे असंवेहो ॥१६॥
निहतधनघातिकर्मा प्रत्यक्षं सर्वभावतत्त्वज्ञः।
ज्ञेयान्तगत: श्रमणो ध्यायति कमर्थमसंदेहः ॥१६७।। लोको हि मोहसवावे ज्ञानशक्तिप्रतिबन्धकसद्भावे च सतृष्णस्वावप्रत्यक्षार्थत्वाइनवच्छिन्नविषयत्वाभ्यां नाभिलषितं जिज्ञासितं संदिग्धं चार्थ ध्यायन् दृष्टः, भगवान् सर्वशस्तु निहतघनघातिकर्मतया मोहामावे ज्ञानशक्तिप्रतिबन्धकाभावे च निरस्ततष्णात्वात्प्रत्यक्षसर्वभाषतत्त्वज्ञेयान्तगतत्वाभ्यां च नाभिलषति न जिज्ञासति न संदिह्यति च कुतोऽभिलषितो जिशासितः संदिग्धश्चार्थः । एवं सति किं ध्यायति ॥१६७॥
भूमिका--अव, सूत्र द्वारा यह प्रश्न करते हैं कि जिन्होंने शुद्धात्मा को प्राप्त किया है, ऐसे सकलज्ञानी (सर्वज्ञ) क्या ध्याते हैं
अन्वयार्थ- [निहतघनघातिकर्मा] जिन्होंने धनघातिकर्म का नाश किया है, [प्रत्यक्ष सर्वभावतत्वज्ञः] जो सर्व पदार्थों के स्वरूप को प्रत्यक्ष जानते हैं, और [जेयान्तगतः] जो ज्ञेयों के पार को प्राप्त हैं, [असंदेहः] जो सन्देहरहित हैं, ऐसे [श्रमणः] महामुनि (केवली) [कम् अर्थ] किस पदार्थ को [ध्यायति ] ध्याते हैं ?
१. णिहृदधणयाइकम्मो (ज० वृ०)।