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पवयणसारो ]
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कर्म पुगल कर्मरूपी रज नानाभेद को धरने वाले ज्ञानावरणादि मूल तथा उत्तर प्रकृतियों की पर्यायों में स्वयं परिणमन करती है। इससे जाना जाता है कि ( उपाशन की अपेक्षा ) ज्ञानावरणादि कर्मों की उत्पत्ति उन्हीं के द्वारा होती है तथा उनमें मूल व उत्तर प्रकृतियों की विचित्रता भी उन्हीं कृत है, जीवकृत नहीं है ॥ १८७॥
तात्पर्यवृत्ति
अथ पूर्वोक्तज्ञानावरणादिप्रकृतीनां जघन्योत्कृष्टानुभागस्वरूपं प्रतिपादयतिसुपयडीणं विसोही लिब्यो असुहाणसंकिलेस म्मि ।
विवरीदो वु जहण्णो अणुभागो सव्वपयडीणं ॥ १८७ - १॥
अनुभाविति क्रियाध्याहारः । कथंभूतो भवति ? तिब्बो तीव्र: प्रकृष्टः परमामृतसमानः । कास सम्बन्धी | सुहपयडीणं सद्वेद्यादिशुभप्रकृतीनाम् । कया कारणभूतया ? विसोही तीव्रधर्मानुरागरूपविशुद्धया असुहाण संकिलेसम्म असवेद्याद्यशुभप्रकृतीनां तु मिथ्यात्वादिरूपतीव्र संक्लेशे सति तीव्रो हालाहल विषसदृशो भवति । विवरीदो दु जष्णो विपरीतस्तु जघन्य गुडनम्वरूपो भवति । जधन्यविशुद्धया जघन्यसंक्लेशेन च मध्यमविशुद्धचा मध्यमसंक्लेशेन तु शुभाशुभप्रकृतीनां खण्डशर्करारूप: काजीरविषरूपश्येति । एवंविधो जघन्य मध्यमोत्कृष्टरूपोऽनुभागः कास सम्बन्धी भवति ? सम्बपयडीणं मुलोत्तरप्रकृति रहितनिजपरमानन्दैकस्वभावलक्षण सर्वप्रकारोपादेयभूतपरमात्मद्रव्याद्भिन्नानां हेयभूतानां सर्व मुलोत्तरकर्म प्रकृतीनामिति कर्म शक्तिस्वरूपं ज्ञातव्यम् ।। १८७ - १॥
उत्पानिका — आगे पूर्व में कही हुई ज्ञानावरणादि प्रकृतियों का जघन्य उत्कृष्ट अनुभाग का स्वरूप बताते हैं
अन्वय सहित विशेषार्थ - ( सुहपयडीणं ) शुभ प्रकृतियों का ( अनुभागो) अनुभाग ( विसोही) विशुद्धभाव से ( असुहाण) अशुभप्रकृतियों का ( संकिलेसम्म ) संक्लेशभाव से (तिव्यो ) तीव्र होता है, (विवरीदो दु) परन्तु इसके विपरीत होने पर ( सव्यपयडी) सर्व प्रकृतियों का ( जहष्णो ) जघन्य होता है । फल देने की शक्ति विशेष को अनुभाग कहते हैं। तीव्र धर्मानुरागरूप विशुद्धभाव से सातावेदनीय आदि शुभकर्म प्रकृतियों का अनुभाग परम अमृत के समान उत्कृष्ट पड़ता है तथा मिथ्यात्व आदि रूप संक्लेशभाव से असाताarrate आदि अशुभ प्रकृतियों का अनुभाग हालाहल विष के समान तीव्र पड़ता है । तथा जघन्य विशुद्धि से व मध्यम विशुद्धि से शुभप्रकृतियों का अनुभाग जघन्य या मध्यम पड़ता है अर्थात् गुड़, खांड, शर्करारूप पड़ता है। वैसे ही जघन्य या मध्यम संक्लेश से अशुभ प्रकृतियों का अनुभाग नीम, कांजीर विषरूप जघन्य या मध्यम पड़ता है। इस तरह मूल