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पवयपसारो ]
[ ३२७ मुर्ता इन्द्रियग्राह्याः पुद्गलद्रव्यात्मका अनेकविधाः 1
द्रव्याणाममूर्तानां गुणा अमूर्ता ज्ञातव्याः ॥१३१।। मूर्तानां गुणानामिन्द्रियग्राह्यत्वं लक्षणम् । अमूर्तानां तवेय विपर्यस्तम् । ते च मूर्ताः पुद्गलद्रव्यस्य, तस्यवेकस्य मूर्तत्वात् । अमूर्ताः शेषद्रव्याणां, पुद्गलादन्येषां सर्वेषामप्यमूर्तत्वात् ॥१३१॥
भूमिका—अब मूर्त और अमूर्त गुण के लक्षण तथा सम्बन्ध (अर्थात् उनका किन द्रन्यों के साथ संबंध है, यह) कहते हैं
___ अन्वयार्थ-[मुर्ताः] मूर्त गुण [इन्द्रियग्राह्याः] इन्द्रिय-ग्राह्य हैं [पुद्गलद्रव्यात्मकाः] पुद्गल द्रव्यमयी हैं तथा [अनेक-विधाः] अनेक प्रकार के हैं, [अमूर्तानां द्रव्याणां] अमूर्त द्रव्यों के [गुणाः] गुण [अमूर्ता:ज्ञातव्याः] अमूर्त जानना चाहिये ।
____टीका-मूर्त गुणों का लक्षण इन्द्रिय ग्राह्यत्व है, और अमूर्त गुणों का उससे विपरीत है, (अर्थात् अमूर्त गुण इन्द्रियों से ज्ञात नहीं होते ) और मूर्त गुण पुद्गल द्रव्य के हैं, क्योंकि वही (पुद्गल ही) एक मूर्त है, और अमूर्त गुण शेष द्रव्यों के हैं, क्योंकि पुद्गल के अतिरिक्त शेष द्रव्य अमूर्त हैं ॥१३॥
___ तात्पर्यवृत्ति अथ मुर्तामूर्तगुणानां लक्षणं सम्बन्धं च निरूपयति__ मुत्ता इंदियगेज्झा मूर्ता गुणा इन्द्रियग्राह्या भवन्ति, अमूर्ताः पुनरिन्द्रियविषया न भवन्ति इति मूर्तामूर्तगुणानामिन्द्रियानिन्द्रियविषयत्वलक्षणमुक्तं । इदानीं मुर्तगुणाः कस्य सम्बन्धिनो भवन्तीति सम्बन्धं कथयति ? पोग्गलदव्यप्पगा अणयविहा मूर्तगुणाः पुद्गलद्रव्यात्मका अनेकविधा भवन्ति पुद्गलद्रव्यसम्बन्धिनो भवन्तीत्यर्थः । अभूर्तगुणानां सम्बन्ध प्रतिपादयति दवाणममुत्ताणं त्रिशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावं यत्परमात्मद्रव्यं तत्प्रभृतीनाममूर्तद्रव्याणानां सम्बन्धिनो भवन्ति । ते के गुणाः ? गुणा अमुत्ता अमूर्ताः गुणाः केवलज्ञानादय इत्यर्थः । इति मुर्तामर्तगुणानां लक्षणसम्बन्धी मुणेदव्वा ज्ञातव्यौ ॥१३॥
एवं ज्ञानादिवशेषगुणभेदेन द्रव्यभेदो भवतीति कथनरूपेण द्वितीयस्थले गाथाद्वयं गतम् । उत्थानिका-आगे मूर्तिक और अमूर्तिक गुणों का लक्षण और सम्बन्ध कहते हैं
अन्वय सहित विशेषार्थ-(इंदियगेज्मा) जो इन्द्रिय के ग्रहण करने योग्य हैं (मूत्ता) वे मूर्तिक हैं वे (अणेयविहा) अनेक प्रकार के हैं तथा (पोग्गल-दव्वप्पगर) पुद्गल-द्रव्यमयो हैं । (अमुताणं दब्याणं) अमूर्तिक द्रव्यों के (गुणा) गुण (अमुत्ता) अमूर्तिक (मुणेदध्वा) जानने योग्य हैं। जो इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण करने योग्य हैं वे मूर्तिक गुण हैं और जो अमूर्तिक गुण हैं वे इंद्रियों के द्वारा नहीं ग्रहण किये जाते हैं। इस तरह मूर्तिक गुणों का लक्षण इन्द्रियों का विषयपना है जब कि अमूर्तिक गुणों का लक्षण इन्द्रियों का विषयपना नहीं है। मूर्तिकगुण अनेक प्रकार के पुद्गल द्रव्य सम्बन्धी होते हैं तथा अमूर्तिकगुण