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[ पवयणसारो
इन्द्रिय का विषय है । वह बाकी इन्द्रियों का विषय क्यों नहीं होता है ? ऐसी शंका का समाधान यह है कि अन्य इन्द्रिय का विषय अन्य इन्द्रिय द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता, ऐसा वस्तु का स्वभाव है। जैसे रसादि विषय रसना इन्द्रिय आदि के रूप, प्रायोगिक और वैrसिकरूप अनेक प्रकार का है जैसा कि पंचास्तिकाय की “सद्दो खंधत्वभवो" इस गाथा में समझाया है यहां इतना ही कहना पर्याप्त है ॥ १३२ ॥
। यह शब्द भाषा
भावार्थ - श्री पंचास्तिकाय में भी कहा है
सद्दो धप्पमवो बंधो परमाणु संगसंधादो । पुट्ठेसु तेसु जायदि सही उप्पावगो यिदो ॥७६॥
शब्द स्कंधों के द्वारा पैदा होता है, स्कंध परमाणुओं के मेल से बनते हैं और उन स्कंधों के परस्पर संघट्ट होने पर शब्द पैदा होता है । भाषावगंणा के योग्य सूक्ष्म स्कंध जो शब्द के अभ्यंतर कारण हैं लोक में हर जगह, हर समय मौजूद हैं। जब सालु, ओठ आदि का व्यापार होता है या घंटे की चोट होती है या मेघादि का मिलान होता है तब भाषावर्गणा योग्य पुद्गल शब्द रूप में परिणमन कर जाते हैं। निश्चय से भाषावर्गणा योग्य पुद्गल ही शब्दों के उत्पन्न करने वाले हैं ।। १३२ ॥
अमूर्तानां शेषद्रव्याणां गुणान् गृणाति
धम्मद्दव्वस्स
आगासस्तवगाहो गमणहेदुत्तं । धम्मेदरदव्वस्स दु गुणो पुणो ठाणकारणदा ॥१३३॥ कालस्स वट्टणा से गुणोवओगो त्ति अप्पणी भणिदो ।
या संखेवादो गुणा हि मुत्तिप्पहीणाणं ॥१३४॥ जुगलं । आकाशस्यावगाहो धर्मद्रव्यस्य गमनहेतुत्वम् ।
धर्मेतरद्रव्यस्य तु गुणः पुनः स्थानकारणता १११३३॥ कालस्य वर्तना स्यात् गुण उपयोग इति आत्मनो भणितः ।
ज्ञेयाः संक्षेपाद्गुणा हि मूर्तिप्रहणानाम् ॥ १३४ ॥ युगलम् । विशेषगुणो हि युगपत्सर्वद्रव्याणां साधारणावगाहहेतुत्वमाकाशस्य, सकृत्सर्वेषां गमनपरिणामिनां जीवपुद्गलानां गमनहेतुत्वं धर्मस्य, सकृत्सर्वेषां स्थानपरिणामिनां जीवपुद्गलानां स्थान हेतुत्वमधर्मस्य, अशेषशेषद्रव्याणां प्रतिपर्यायं समयवृत्तिहेतुत्वं कालस्य, चैतन्यपरिणामो जीवस्य । एवमसूर्तानां विशेषगुणसंक्षेपाधिगमे लिङ्गम् । तत्रैककालमेव सकलद्रव्यसाधारणावगाहसम्पादनमसर्वगतत्वादेव शेषद्रव्याणामसंभवदाकाशमधिगमयति । तर्थकवारमेव गतिपरिणतसमस्त जीवपुद्गलानामालोकाद्गमन हेतुत्वम प्रदेशत्वात्कालपुद्गलयोः