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[ परयणसारो एको वा द्वौ बहवः संख्यातीतास्ततोजन्ताश्च ।
द्रव्याणां च प्रदेशा: सन्ति हि समया इति कालस्य ।।१४१।। प्रदेशप्रचयो हि तिर्यक्प्रचयः, समयविशिष्टवृत्तिप्रचयस्तदूर्ध्वप्रचयः । तत्राकाशस्यावस्थितानन्तप्रदेशत्वाधर्माधर्मयोरवस्थितासंख्येयप्रदेशत्याज्जीवस्यानवस्थितासंख्येयप्रदेशत्वात् पुद्गलस्य द्रव्येणानेकप्रदेशत्वशक्तियुक्तकप्रदेशत्वात्पर्यायेण द्विबहुप्रदेशत्वाच्चास्ति तिर्यकप्रचयः। न पुनः कालस्य शक्त्या व्यक्त्या चैकप्रदेशत्वात् । ऊध्वंप्रचयस्तु, त्रिकोटिस्पशित्वेन सांशत्वादनव्ययत्तेः सर्वव्याणामनिवारित एव । अयं तु विशेषः समयविशिष्ट
त्तिप्रचयः शेषद्रध्याणामूर्वप्रचयः समयप्रचयः एव कालस्योर्ध्वप्रचयः । शेषद्रव्याणां वृहि समयावर्थान्तर मूतत्वादस्ति समयविशिष्टत्वम् । कालवृत्तेस्तु स्वतः समयभूतत्वातन्नास्ति ॥१४१।।
भूमिका-अब, (प्रदेश अपेक्षा) तिर्यक् प्रचय तथा (काल प्रवाह अपेक्षा) ऊर्वप्रचय बतलाते हैं।
अन्वयार्थ— [द्रव्याणां च ] द्रव्यों के [हि] निश्चय से [एकः] एक, [at] दो, [बहवः ] बहुत (संख्यात) [वा] अथवा [संख्यातोताः] असंख्यात [ततः च] और फिर | अनन्ताः ] अनन्त [प्रदेशाः] प्रदेश [सन्ति] हैं। [कालस्य] काल के [समयाः इति] 'समय' हैं।
___टीका--प्रदेशों का समूह नियंक्प्रचय और समयविशिष्ट वृत्तियों का (पर्यायों का) समूह ऊध्यप्रचय है। वहाँ आकाश अवस्थित (स्थिर) अनन्त प्रदेश वाला है, धर्म तथा अधर्म अवस्थित असंख्य प्रदेश वाले हैं, जीव अनवस्थित असंख्य प्रदेशी है, और पुद्गल द्रव्यतः अनेक-प्रदेशित्व की शक्ति से युक्त एक प्रदेशवाला है तथा पर्याय की अपेक्षा वो अथवा बहुत (संख्यात, असंख्यात, अनन्त) प्रदेशवाला है, इसलिये उनके (आकाशादिक के) तिर्यकप्रचय है। परन्तु काल के तिर्यक प्रचय नहीं है, क्योंकि वह शक्ति तथा व्यक्ति (की अपेक्षा) से एक प्रवेशवाला है।
___ऊर्ध्वप्रचय तो सर्वद्रव्यों के अनिवार्य हो है, क्योंकि द्रव्य की वृत्ति (परिणति) तीन कोटियों को (भूत, वर्तमान और भविष्यत-ऐसे तीनों कालों को) स्पर्श करती है, इसलिये अंशों से युक्त है (एक समय को पर्याय कालिक परिणतिका एक अंश है)। परन्तु इतना अन्तर है कि समय विशिष्ट वृत्तियों का प्रचय (काल को छोड़कर) शेष द्रव्यों का ऊर्ध्वप्रचय है, और समयों का प्रचय काल द्रव्य का ऊर्ध्वप्रचय है, क्योंकि शेष द्रव्यों की