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पवयणसारो ]
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तथा व्यतिरेकों का अनुसरण नहीं कर सकता, अर्थात् उसमें ध्रौव्य तथा उत्पाद-व्यथ नहीं हो सकते ।)
प्रश्न- -जब कि इस प्रकार काल सप्रदेश है तो उसके एक द्रव्य के कारणभूत लोकाकाश के तुल्य ( बराबर ) असंख्यात प्रदेश क्यों न मानने चाहियें ?
उत्तर- ऐसा हो तो पर्याय समय सिद्ध नहीं होता, इसलिये असंख्य प्रदेश मानना योग्य नहीं है । परमाणु के द्वारा प्रदेशमात्र कालद्रव्य का उल्लंघन करने पर ( अर्थात् - परमाणु के द्वारा एक प्रदेशमात्र फालाणु से निकट के दूसरे प्रदेशमात्र कालाणु तक मंदगति से गमन करने पर ) समय रूप पर्याय की सिद्धि होती है । यदि द्रव्यसमय आकाशतुल्य असंख्य प्रदेशी हो तो समथरूप पर्याय को सिद्धि कहां से होगी ? (नहीं होगी । )
'यदि द्रव्यसमय अर्थात् कालपदार्थ लोकाकाश जितने असंख्य प्रदेश वाला एक द्रव्य हो तो भो परमाणु के द्वारा उसका एक प्रदेश उल्लंघित होने पर पर्यायसमय की सिद्धि हो जायगी; ऐसा कहा जाय तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि ( उसमें दोष आते हैं ) -
( १ ) एक प्रदेश की वृत्ति को सम्पूर्ण द्रव्य की वृत्ति मानने में विरोध है । (उपरोक्त मान्यता से) सम्पूर्ण काल पदार्थ का ओ सूक्ष्म कृत्यंश है यह समय होगा परन्तु उसके एक देश का वृत्त्यंश 'समय' नहीं होगा । ( अथवा )
(२) तिर्यक्प्रचय को ऊर्ध्वप्रचयत्व का प्रसंग आता है । वह इस प्रकार है किप्रथम, कालद्रव्य एक प्रदेश से यर्ते, फिर प्रदेश से वर्ते और फिर अन्य प्रदेश से वर्ते ( ऐसा प्रसंग आता है) इस प्रकार तिर्यक्प्रचय ऊयंप्रचय बनकर द्रव्य को प्रदेशमात्र स्थापित करता है । ( अर्थात् तिर्यक्प्रचय ही ऊर्ध्वप्रचय है, ऐसा मानने का प्रसंग आता है, इसलिये द्रव्य प्रदेशमात्र ही सिद्ध होता है ।) इसलिये तिर्यक्प्रचय को ऊर्ध्वप्रचयत्व न मानने ( चाहने) वाले को प्रथम ही कालद्रव्य को प्रदेशमात्र निश्चय करना चाहिये || १४४ ॥
इस प्रकार ज्ञेयतत्वप्रज्ञापन में द्रव्यविशेषप्रज्ञापन अधिकार समाप्त हुआ ।
तात्पर्यवृत्ति
अथोत्पादव्ययौव्यात्म कास्तित्वावष्टम्भेन कालस्यैकप्रदेशत्वं साधयति
सण संति यस्य पदार्थस्य न सन्ति न विद्यन्ते । के ? पएसा प्रदेशाः पएसमेतं तु प्रदेशमात्रमेकप्रदेशप्रमाणं पुनस्तद्वस्तु तच्चवो णाहुं तत्त्वतः पदार्थतो ज्ञातुं शक्यते । सुण्णं जाण तमत्थं यस्यैकोऽपि प्रदेशो नास्ति तमर्थं पदार्थ शून्यं जानीहि हे शिष्य ! कस्माच्छ्रन्यमिति चेत् ? अत्यंतरभूदं एकप्रदेशाभावे सत्यर्थान्तरभूतं भिन्नं भवति यतः कारणात्। कस्याः सकाशाद्भिन्नम् ? अत्थोदो उत्पादव्यय