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वयणसारो ।
[ २५१ । अन्वय सहित विशेषार्थ-(उप्पाददिदिभंगा) उत्पाद, व्यय और प्रौव्य (पज्जएसु) पायों में (विज्जते) रहते हैं । (पज्जाया) पर्याय (णियदं हि) निश्चय से हो (व्वं) ष्य में (संति) रहती हैं। (तम्हा) इस कारण से (सध्वं) वे सब पर्याय (दवं) द्रव्य हिबकि) हैं । (वृत्तिकार सम्यग्दर्शन पर्याय का दृष्टांत देखकर बताते हैं कि) विशुद्धज्ञानधर्शन स्वभाव रूप आत्मतत्व निर्विकार स्वसंवेदनज्ञान रूप से उत्पाद, उसी ही समय में
संवेदनशान से विलक्षण अज्ञान पर्याय रूप से ध्यय तथा इन दोनों का आधारभूत कारमय्यपने की अवस्था रूप से ध्रौव्य ऐसे ये तीनों ही भेद पर्यायों में रहते हैं अर्थात् सम्यक्त्व-पूर्वक निर्विकार स्वसंवेदनज्ञान पर्याय से उत्पाद है तथा स्वसंवेदन-रहित अज्ञान अषि रूप से व्यय तथा इन दोनों का आधार रूप आत्मद्रव्यपने की अवस्था रूप से मन्यि अपनी-अपनी पर्यायों में रहते हैं। और ये ऊपर कहे हुए लक्षण सहित जो ज्ञान, मान और इन दोनों का आधार रूप आत्म-द्रव्यपना ऐसी ये पर्याय निश्चय करके अपनेपाने संना लक्षण प्रयोजन आदि के भेद से भेद रूप हैं तथापि आत्मा के प्रदेशों में होने से
रूप हैं इसलिये जब निश्चय से ये उत्पाद व्यय प्रौव्य आधार-आधेयभाव से द्रव्य हते हैं तब यह स्वसंवेदनान आदि पर्याय रूप उत्पाद व्यय धोव्य तीनों अन्वय गापिकनय से द्रव्य हैं। पूर्व कथित उत्पाद आदि तीनों का तैसे ही स्वसंवेदनज्ञान दि तीनों पर्यायों का अनुगत आकार से व अन्यय रूप से जो आधार हो सो अन्वय कहलाता है। अन्वय द्रव्य जिसका विषय हो उसको अन्वय ब्रव्याथिकनय कहते हैं। महाँ जान अज्ञान पर्यायों में तीन भेद कहे गये तैसे ही सर्व द्रव्य को पर्यायों में यथा जान लेना चाहिये, यह अभिप्राय है ॥१०१॥ पोत्पारावीनां क्षणभेदमुदस्य द्रव्यत्वं द्योतयति
समवेवं खलु दवं संभवठिदिणाससण्णिवठेहि । . एक्कम्मि चेव समये लम्हा दव्वं खु तत्तिदयं ।।१०२॥
समवेतं खलु द्रव्यं संभबस्थितिनाशसंशितार्थः ।।
एकस्मिन् चैव समये तस्माद्रव्यं खन्नु तत्वितयम् ।। १०२।। ह हि यो नाम वस्तुनो जन्मक्षणः स जन्मनेत्र व्याप्तत्वात् स्थितिक्षणो नाशक्षणश्च
। यरच स्थितिक्षणः स खलुभयोरन्तरालदुर्ललितत्वाज्जन्मक्षणो नाशक्षणश्च - यश्च नाशक्षणः स तूत्पद्यावस्थाय च नश्यतो जन्मक्षणः स्थितिक्षणश्च न
प्रत्युत्पावावीनां वितर्यमाणः क्षणभेदो हृदयभूमिमवतरति । अवतरत्येवं यदि