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मार्य
पवयणसारो ]
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अथ द्रव्यस्योत्पाव्यय धौव्याण्यनेकद्रव्यपर्यायद्वारेण चिन्तयतिपाब्भवदि य अण्णो पज्जाओ पज्जओ वयदि अण्णो । दव्यस्स तं पि दव्वं णेव पणट्ठ ण उप्पणं ॥ १०३ ॥ प्रादुर्भवति चान्यः पर्यायः पर्यायो व्येति अन्यः 1
द्रव्यस्य तदपि द्रव्यं नैव प्रणष्टं नोत्पन्नम् ॥१०३॥
इह हि यया किलैकस्यणुकः समानजातीयोऽनेकद्रव्यपर्यायो विनश्यत्यन्यश्चतुरणुकः प्रजायते, ते तु चत्वारो वा पुद्गला अविनष्टानुत्पन्ना एवावतिष्ठन्ते । तथा सर्वेपि समानजातीया द्रव्यपर्याया विनश्यन्ति प्रजायन्ते च । समानजातीनि द्रव्याणि त्वविनष्टामुत्पन्नान्येवावतिष्ठन्ते । यथा चंको मनुष्यत्यलक्षणोऽसमानजातीयो द्रव्यपर्यायो विनश्यत्यस्वस्त्रिदशत्वलक्षणः प्रजायते तौ च जीवपुद्गलो अनिष्टानुत्पन्नावेवावतिष्ठेते, तथा सर्वे समानजातीया द्रव्यपर्याया विनश्यन्ति प्रजायन्ते च असमानजातीति द्रव्याणि त्यविनुत्पन्नान्येवावतिष्ठन्ते । एवमात्मना ध्रुवाणि द्रव्यपर्यायद्वारेणोत्पादव्ययीभूतान्युत्पामुष्यधव्याणि द्रव्याणि भवन्ति ॥ १०३ ॥
भूमिका – अब, द्रव्य के उत्पाद-व्यय-श्रव्य को अनेक ( एक से अधिक ) द्रव्यों से होने वाली पर्याय द्वारा विचार करते हैं
[प्रादुर्भवति ] नष्ट होती है, [ उत्पन्नं न]
अन्वयार्थ -- [ द्रव्यस्य ] द्रव्य की [ अन्यः पर्यायः ] अन्य द्रव्य पर्याय होती है [च] और [ अन्यः पर्यायः ] कोई अन्य द्रव्य पर्याय [व्येति ] [[ ] फिर भी [arj] ] द्रव्य [ प्रणष्टं न एव ] न तो नष्ट होता है, उत्पन्न होता है । ( वह तो द्रव्यपने से ध्रुव रहता है | )
टीका - यहां (विश्व में ) वास्तव में जैसे एक त्रि-अणुक की समानजातीय अनेकहम्पपर्याय विनष्ट होती हैं और दूसरी चतुरणुक ( समानजातीय अनेकद्रव्यपर्याय ) उत्पन्न "होती हैं, परन्तु वे तीन या चार पुद्गल ( परमाणु ) तो अविनष्ट और अनुत्पन्न ही रहते हैं शुभव हैं ) इसी प्रकार सब ही समानजातीय द्रव्यपर्यायें विनष्ट होती हैं, किन्तु समानजातीय
तो अविनष्ट और अनुत्पन्न ही रहते हैं (ध्रुव हैं) और जैसे एक मनुष्यत्वस्वरूप मिसमासजातीय द्रव्य पर्याय विनष्ट होती है और दूसरी देवत्वस्वरूप ( असमानजातीय द्रव्यउपाय) उत्पन्न होती है, परन्तु ये जीव पुद्गल तो अविनष्ट और अनुत्पन्न ही रहते हैं, प्रकार सब हो असमानजातीय द्रव्य-पर्यायें विनष्ट होती हैं और उत्पन्न होती हैं,
१. गट्टे (ज० बु० )