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पमयणसारो अथ क्रियाभावतद्भावविशेषं निश्चिनोति
उप्पादछिमिया पोग्बालाजी लोगस । परिणामा जायते' संघादादो व भेदादो ॥१२६॥
उत्पादस्थितिभङ्गाः पुद्गलजीवात्मकस्य लोकस्य ।
परिणामाज्जायन्ते संघाताद्वा भेदात् ।। १२६।। ... . क्रियाभाववत्त्वेन केवलभाववत्त्वेन च द्रव्यस्थास्ति विशेषः । तत्र भाववन्तौ कियावन्तौ च पुदगलजीवी परिणामाझेदसंघाताभ्यां चोत्पद्यमानावतिष्ठमानभज्यमानत्वात् । शेषद्रव्याणि तु भाववन्त्येव परिणामादेवोत्पद्यमानावतिष्ठमानभज्यमानत्वादिति निश्चयः । तत्र परिणाममात्रलक्षणो भावः, परिस्पन्दनलक्षणा किया। तत्र सर्वाण्यपि द्रव्याणि परिणामस्वभावत्वात् परिणामेनोपात्तान्वयव्यतिरेकाण्यवतिष्ठमानोत्पद्यमानभज्यमानानि भाववन्ति भवन्ति । पुद्गलास्तु परिस्पन्दस्वभावत्वात्परिस्पन्देन भिन्नाः संघातेन संहताः पुनर्भेदेनोत्पद्यमानावतिष्ठमानज्यमानाः क्रियावन्तश्च भवन्ति । तथा जीवा अपि परिस्पन्दस्वभावत्यात्परिस्पन्देन नूतनकर्मनोकर्मपुद्गलेभ्यो भिन्नास्तः सह संघातेन संहताः पुनर्भेदेनोल्पद्यमानावतिष्ठमानभज्यमानाः क्रियावन्तश्च भवन्ति ।।१२६॥
भूमिका--अब, किया-रूप और 'भाव' रूप जो द्रब्य के भाव हैं उनकी अपेक्षा से द्रव्य का भेद निश्चित करते हैं
अन्वयार्थ -[पुद्गलजीवात्मकस्य लोकस्य] पुद्गल-जीवमयी लोक के (अर्थात् जीव पुद्गल के) [परिणामात्] परिणमन से, तथा [संघातात् या भेदात् ] संघात (मिलने) और भेद (पृथक् होने) से [उत्पादस्थितिभंगाः] उत्पाद, ध्रौव्य, और व्यय [जायन्ते] होते हैं । (सामर्थ्य से अर्थात् परिशेष न्याय से यह भी सिद्ध हो जाता है कि शेप चार द्रव्यों के केवल परिणमन से उत्पाद आदि होते हैं)
टीका-कोई द्रव्य 'भाव' वाले तथा 'क्रिया वाले होने से और कोई द्रव्य केवल 'भाव' वाले होने से, इस अपेक्षा से बच्चों के भेव होते हैं। उनमें पुद्गल तथा जीव (१) भाव वाले तथा (२) क्रिया वाले हैं, क्योकि (१) परिणाम द्वारा तथा (२) संघात और भेद के द्वारा वे (जीव पुद्गल) उत्पन्न होते हैं, टिकते हैं और नष्ट होते हैं। शेष द्रव्य तो भाव वाले ही हैं, क्योंकि वे परिणाम के द्वारा ही उत्पन्न होते हैं, टिकते हैं और नष्ट होते हैं, ऐसा निश्चय है।
१. ज्ञादि (जम वृ०)