________________
। पक्यणसारो शब्द से हार, सूत्र या मोती का ज्ञान नहीं होता है केवल मफेन गण का न होता है इसी तरह हार, सूत या मोती शब्दो से शुक्ल नहीं कहा जाता है। इस तरह हार, सूत तथा मोती के साथ शुक्ल गुण का प्रदेशों की अपेक्षा अभेद या एकत्त्य होने पर भी जो संज्ञा आदि का भेद है वह भेद पहले कहे हुए तभाव या तन्मयपने का अभाव रूप अतभाव है या अन्यत्त्व है अर्थात् संज्ञा लक्षण प्रयोजब आदि का भेद है। तैसे मुक्त जीव में जो कोई शुद्ध सत्तागण है उसको कहने वाले सत्ता शब्द से मुक्त जीव नहीं कहा जाता, न केवलज्ञानादि गुण कहे जाते हैं, न सिद्ध पर्याय कही जाती है और न मुक्त जीव केवलज्ञानादि गुण या सिद्ध पर्याय से शुद्ध सत्ता गुण कहा जाता है। इस तरह सत्ता गुण का मुक्त जीवादि के साथ परस्पर प्रदेशभेद न होते हुए भी जो संज्ञा आदिकृत भेद है वह भेद उस पूर्व में कहे हुए तद्भाव या तन्मयपने के लक्षण से रहित अतद्भाय या अन्यत्त्व कहा जाता है । अर्थात् संज्ञा लक्षण प्रयोजन आदि-कृत भेद है, ऐसा अर्थ है । जैसे यहां शुद्धात्मा में शुद्ध सत्ता गुण के साथ अभेद स्थापित किया गया, तैसे हो यथा-संभव सर्व द्रव्यों में जानना चाहिये, यह अभिप्राय है-अर्थात् आत्मा का और सत्ता का प्रदेश की अपेक्षा अभेद है, मात्र संज्ञादि स्वरूप को अपेक्षा भेद या अन्यत्व है। ऐसा ही अन्य द्रव्यों में समझना ॥१०॥
अथ सर्वथाऽमावलक्षणत्वमतद्धावस्य निषेधयति
जं दव्वं तं ण गुणो जो वि गुणो सो ण तच्चमत्थादो। एसो हि अतभावो व अभावो ति णिहिट्ठो ॥१०॥
यद्रव्यं तन्न गुणो योऽपि गुणः स न तत्त्वमर्थात् ।
एप ह्यतद्भावो नैव अभाव इति निर्दिष्टः ।।१०॥ एकस्मिन्द्रव्ये यद्रव्यं गुणो न तद्भवति, यो गुणः स द्रव्यं न भवतीत्येवं यद्रव्यस्य गुणरूपेण गुणस्य या द्रव्यरूपेण तेनाभवनं सोऽतद्धावः । एतावतवान्यत्वव्यवहारसिद्धेर्न पुनव्यस्याभावो गुणो, गुणस्याभावो द्रव्यमित्येवंलक्षणोऽभावोऽतद्भाव, एवं सत्येकद्रव्यस्यानेकत्वमुभयशन्यत्वमपोहरूपत्वं या स्यात् । तथाहि-यथा खलु चेतनद्रव्यस्याभावोऽचेतनद्रव्यमचेतनद्रव्यस्याभायश्चेतनद्रव्यमिति तयोरनेकत्वं, तथा द्रव्यस्याभावो गुणो गुणस्याभावो द्रव्यमित्येकस्यापि द्रव्यस्यानेकत्वं स्यात् । यथा सुवर्णस्याभावे सुवर्णत्वस्याभावः, सुवर्णत्वस्थाभाचे सुवर्णस्याभाव इत्युभयशून्यत्वं, तथा द्रव्यस्याभावे गुणस्याभावो गुणस्याभावे द्रव्य
१. तण (ज० वृ०)।