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पवयणसारो ]
[ २४६ स्कन्धमूलशाखाभिरालम्बित एष प्रतिभाति, तथा समुदायि द्रव्यं पर्यायसमुदायात्मक पर्यावैरालम्बितमेव प्रतिभाति । पर्यायास्तुत्पादव्ययध्रौव्यैरालम्ब्यन्ते उत्पादव्ययधौव्याणाम. राधर्मत्वात् जीजांकुरपादपत्ववत् । यथा किलाशिनः पादपस्य बीजांकुरपादपत्वलक्षणास्त्रयोंऽशा भङ्गोत्पाद-धोव्यलक्षणैरात्मधर्मरालम्बिताः सममेव प्रतिभान्ति, तथांशिनो द्रव्यस्योच्छिधमानोत्पद्यमानावतिष्ठमानभावलक्षणास्त्रयोंऽशा भङ्गोत्पादध्रौव्यलक्षणरास्मधर्मरालम्बिताः सममेव प्रतिभान्ति । यदि पुनर्भङ्गोत्पावनौव्याणि द्रव्यस्यैवेष्यन्ते तदा समग्रमेव विप्लवते। तथाहि भंगे तावत् क्षणभङ्गकटाक्षितानामेकक्षण एव सर्वद्रव्याणां संहरणाद्रव्यशून्यतावतारः सदुच्छेदो या । उत्पादे तु प्रतिसमयोत्पादमुद्रितानां प्रत्येकं द्रव्याणामानन्त्यमसमुत्पादो वा। ध्रौव्ये तु क्रमभुवां भावानामभावाद्य्यस्यामावः भणिकत्वं वा। अत उत्पादन्ययध्रौव्यरालम्ज्यन्ता पर्यायाः पर्यायश्च द्रव्यमालम्ब्यतां, येन समस्तमप्येतरेकमेव ध्यं भवति ॥१०॥
भूमिका-अब, उत्पादादि का द्रव्य से अर्थान्तरत्व को नष्ट करते हैं, (अर्थात् यह । सिद्ध करते हैं कि उत्पाद-व्यय-धोव्य द्रव्य से पृथक् पदार्थ नहीं हैं)
अन्वयार्थ-[उत्पाद-स्थिति-भङ्गाः उलाद, धौमागिय पर्यायों में (अंशों में) [विद्यन्ते] रहते हैं [हि] निश्चय से [पर्यायाः] पर्यायें [द्रव्ये हि सन्ति] द्रव्य मैं होती हैं, [तस्मात् ] इसलिये [नियत] नियम से [सर्वं] वह सब (उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य) द्रव्यं भवति ] द्रव्य हैं।
टीका-उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य वास्तव में पर्यायों (अंशों) को आलम्बन करते हैं और वे पर्यायें द्रष्य को आलम्बन करती हैं, इसलिये यह सब द्रब्य ही है, द्रव्यान्तर नहीं (उत्पाव व्यय-धोव्य द्रव्य से पृथक् पदार्थ नहीं हैं) वास्तव में प्रथम तो गच्य पर्यायों " (अंशों) के द्वारा आलम्बित किया जाता है, क्योंकि समुदायो (समुदायवान्) समुदाय स्वरूप होता है । वृक्ष की भांति जैसे समुदायी वृक्ष, स्कंधमूल और शाखाओं का समुदाय स्वाप होने से स्कंध, मूल और शाखाओं से आलम्बित ही प्रतिमासित होता है (दिखाई जीता है), इस ही प्रकार समवायी द्रव्य, पर्यायों का समदाय स्वरूप होने से पर्यायों के सारा आलम्बित ही प्रतिभासित होता है। (अर्थात् जैसे स्कंध, मूल और शाखायें वृक्षामत ही है-वृक्ष से भिन्न पदार्थ रूप नहीं हैं, उस ही प्रकार पर्याय द्रव्याभित ही हैं
से भिन्न पदार्थ रूप नहीं हैं।) और पर्यायें उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य के द्वारा आलम्बित समर्थात् उत्पाद-पय-ध्रौव्य पर्यायाश्रित हैं) क्योंकि उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य के अंश-धर्मपना