________________
परयणसारो ]
[ २४५ प्रकाशनात। यैव च मृत्तिकायाः स्थितिस्तावेव कुम्मपिण्डयोः सर्गसंहारी, व्यतिरेकाणामबयानतिक्रमणात् । यदि पुनर्नेदमेवमिव्येत तदान्यः सर्गोऽन्यः संहारः अन्या स्थितिरित्यायाति तथा सति हि केवलं सर्ग मृगयमाणस्य कुम्भस्योत्पादनकारणाभावादमवनिरेव भवेत, असउत्पाद एवं वा । तत्र कुम्भस्याभवनों सर्वेषामेव भावानामभवनिरेव भवेत् । असदुत्पादे वा ध्योमप्रसवादीनामप्युत्पादः स्यात् । तथा केवल संहारमारभमाणस्य मृत्पिण्डस्य संहारकारणाभावावसहरणिरेव भवेत्, सदुच्छेद एव वा तत्र मृत्पिण्डस्यासंहरणौ सर्वेषामेव भावानामसं. हरभिरेव भवेत् । सवुच्छेदे वा संविदादीनामप्युच्छेदः स्यात् । तथा केवलां स्थितिमुपगच्छत्या मृत्तिकाया व्यतिरेकाक्रान्तस्थित्यन्वयाभावादस्थानिरेव भवेत, क्षणिकनित्यत्वमेव वा । सत्र मृत्तिकाया अस्थानौ सर्वेषामेव भावानामस्थानिरेव भवेत् । क्षणिकनित्यत्वे वा चिंत्तक्षणा। मामपि निरयत्य यात् । तर उत्तरोतरतिरेका तग पूर्वपूर्वव्यतिरेकाणां संहारेगावत्यावस्थानेनाविनाभूतमुद्योतमाननिर्विघ्नत्रलक्षण्यलाञ्छनं द्रव्यमवश्यमनुमन्तव्यम् ॥१००॥
भूमिका-अब, उत्पाद, व्यय और धौव्य का परस्पर अविनाभाव दृढ़ करते हैं
अन्वयार्थ-[भवः] उत्पाद [भङ्गविहीनः] भंग (व्यय) रहित [न] नहीं होता [T] और [भङ्गः] व्यय [संभवविहीनः] उत्पाद-रहित [नास्ति] नही होता, [उत्पादः] है. उत्पाद [अपि च तथा [भङ्गः] व्यय [ध्रौव्येण अर्थेन बिना] ध्रौव्य पदार्थ के बिना [न] मही होता।
टीका-वास्तव में उत्पाद, व्यय के बिना नहीं होता और व्यय, उत्पाद के बिना नहीं होता तथा उत्पाद और व्यय, स्थिति (प्रौव्य) के बिना नहीं होते, और प्रौव्य, उत्पाद सिमा व्यय के बिना नहीं होता। जो उत्पाद है वही व्यय है। जो व्यय है वही उत्पाद है, जो उत्पाद और व्यय है वही प्रौव्य है, जो ध्रौव्य है वही उत्पाद और व्यय है । वह इस प्रकार कि जो कुम्भ का उत्पाद है वही मृत्तिका-पिण्ड का व्यय है, क्योंकि भाव का भावान्तर अभाव स्वभाव से अवमासन है । (अर्थात् भाव अन्य भाव के अभाव रूप स्वभाव से लायित है-विखाई देता है ।) और जो मृत्तिका-पिण्ड का व्यय है, वही कुम्भ का लाव है, क्योंकि अभाव का भावान्तर के भाव-स्वभाव से अवभासन है, (अर्थात् व्यय माय भाव के उत्पाव रूप स्वभाव से प्रकाशित है।) और जो कुम्भ का उत्पाद और म का व्यय है, वही मृत्तिका का ध्रौव्य है, क्योंकि व्यतिरेकों के द्वारा ही अन्वय प्रकाशन है। और जो मृत्तिका का प्रौव्य है वही कुम्भ का उत्पाद और मृत्पिण्ड का
श्योंकि व्यतिरेकों के अन्वय का उल्लंघन नहीं है, और यदि ऐसा न माना जाय