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तात्पर्यवृति
अथ द्रव्यगुणागार्थसंशयं कथयति
serf गुणा तेपिज्जाया अठ्ठसण्णया भणिया द्रव्याणि गुणास्तेषां द्रव्याणां पर्यायाश्च त्रयोऽत्यर्थ संज्ञया भणिताः कथिता अर्थसंज्ञा भवन्तीत्यर्थः । तेसु तेषु त्रिषु द्रव्यगुणपर्यायेषु मध्ये गुणपज्जाणं अवगुणपर्यायाणां संबन्धी आत्मा स्वभावः । कः इति पृष्टे ? व्यत्ति उवदेसो द्रव्यमेव स्वभाव इत्युपदेशः, अथवा द्रव्यस्य कः स्वभाव ? इति पृष्टे गुणपर्यायानामात्मा एव स्वभाव इति । अथ विस्तरः - अनन्तज्ञानसुखादिगुणान् तथैवामूर्तत्वातीन्द्रियत्व सिद्धत्वादिपर्यायांश्च इयति गच्छति परिणमत्याश्रयति येन कारणेन तस्मादर्थो भण्यते । किं ? शुद्धात्मद्रव्यम् । तच्छुद्धात्मद्रव्यमाधारभूतमियत गच्छन्ति परिणमन्त्याश्रयन्ति येन कारणेन ततोर्था भण्यन्ते । ते ? ज्ञानत्वसिद्धत्वादिगुणपर्याया: । ज्ञानत्वसिद्धत्वादिगुणपर्यायाणामात्मा स्वभावः । क इति पृष्टे शुद्धात्मद्रव्यमेव स्वभावः अथवा शुद्धात्मद्रव्यस्य कः स्वभाव इति पृष्टे पूर्वोक्तगुणपर्याया एवं एवं शेषद्रव्यगुणपर्यायाणामप्यर्थसंज्ञा बोद्धव्येत्यर्थः ॥ ८७॥
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उत्थानिका— आगे द्रव्य, गुण पर्यायों की अर्थसंज्ञा को, कहते हैं
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[ पवयणसारो
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अन्वय सहित विशेषार्थ - ( दग्धाणि) द्रव्य, ( गुणा ) उनके सहभावी गुण व (तेसि पज्जाया) उन द्रव्यों की पर्यायें ये तीनों ही (अट्ठसण्णया) अर्थ के नाम से ( भणिया ) कहे गए हैं। अर्थात् तीनों को ही अर्थ कहते हैं । (ते) इन तीन द्रव्य गुण पर्यायों में से ( गुणपज्जयाणं अप्पा) अपने गुण और पर्यायों का सम्बन्धी स्वभाव (दव्य त्ति) द्रव्य है, ऐसा उपदेश है । अथवा यह प्रश्न होने पर कि द्रव्य का क्या स्वभाव है ? यही उत्तर होगा कि जो गुण पर्यायों का आत्मा या आधार है, वही द्रव्य है, यही गुण पर्यायों का निजभाव है । विस्तार यह है कि जिस कारण से शुद्धात्मा अनन्तज्ञान, अनन्तसुख आदि गुणों को तैसे ही अमूर्तिकपना, अतीन्द्रियपना, सिद्धपना आदि पर्यायों को इयत अर्थात् परिणमन करती है व आश्रय करती है इसलिये शुद्धात्मा द्रव्य अर्थ कही जाती है। जैसे ही जिस कारण से ज्ञानपना गुण और सिद्धपना आदि पर्यायें अपने आधारभूत शुद्धात्मा द्रव्य को इर्यात अर्थात् परिणमन करती है-आश्रय करती है, इसलिये वे ज्ञानगुण व सिद्धत्व आदि पर्यायें भी अर्थ कही जाती हैं। ज्ञानपना गुण और सिद्धपना आदि पर्यायों का जो कुछ सर्वस्व है वही उनका निजभावस्व भाव है और वह शुद्धात्मा द्रव्य ही स्वभाव है । अथवा यह प्रश्न किया जाय कि शुद्धात्मा द्रव्य का क्या स्वभाव है तो कहना होगा कि पूर्व में कही हुई गुण और पर्यायें हैं। जिस तरह आत्मा की अर्थ संज्ञा जानना, उसी तरह द्रव्यों की व उनके गुण पर्यायों की अर्थ संज्ञा है, ऐसा जानना चाहिये ॥७॥