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पवयणसारो ]
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यदि एक न हो तो दूसरे दो सुवर्ण की भांति ।
द्रव्य गुण और पर्याय एक दूसरे से परस्पर सिद्ध होते हैं, भी सिद्ध नहीं होते, (इसलिये ) उनका अस्तित्व एक ही है, जैसे वास्तव में, द्रव्य-क्षेत्र काल-भाव से सुधर्ण से पृथक् न प्राप्त होने वाले तथा सुवर्ण के अस्तित्व से बने हुए पीतत्वादि गुणों और कुण्डलादि पर्यायों के द्वारा जो अस्तित्व है वह (अस्तित्व), कर्ता-करण - अधिकरण रूप से पीतत्वादि गुणों और कुण्डलादि पर्यायों के स्वरूप को धारण करके प्रवर्तमान सुवर्ण का स्वभाव है । उसी प्रकार वास्तव में, द्रव्य क्षेत्र काल भाव से पृथक् प्राप्त न होने वाले तथा द्रव्य के अस्तित्व से बने हुए गुणों और पर्यायों के द्वारा जो अस्तित्व है, वह ( अस्तित्व), कर्ता-करण अधिकरण रूप से गुणों के और पर्यायों के स्वरूप को धारण करके प्रवर्तमान प्रवृत्ति युक्त द्रव्य का स्वभाव है ।
( द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से या भाव से सुवर्ण से भिन्न न दिखाई देने वाले पीतत्वादिक और कुण्डलादिक का जो अस्तित्व है वह सुवर्ण का हो अस्तित्व है, क्योंकि पीतत्वादिक के और कुण्डलादिक के स्वरूप को सुवर्ण ही धारण करता है, इसलिये सुवर्ण के अस्तित्व से ही पीतत्वादिक की और कुण्डलादि की निष्पत्ति सिद्धि होती है, सुवर्ण न हो तो पीतत्वादिक और कुण्डलादिक भी न हों। इसी प्रकार द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से या भाव से भिन्न नहीं दिखाई देने वाले गुणों और पर्यायों का जो अस्तित्व है यह द्रव्य काही अस्तित्व है, क्योंकि गुणों और पर्यायों के स्वरूप को द्रव्य ही धारण करता है, इसलिये द्रव्य के अस्तित्व से ही गुणों की और पर्यायों की निष्पत्ति होती हैं, द्रव्य न हो तों 'गुण और पर्यायें भी न हों। ऐसा अस्तित्व द्रव्य का स्वभाव है ।)
अथवा, जैसे द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से या भाव से पीतत्वादि गुणों से और कुण्डलादि पर्यायों से पृथक् प्राप्त होने वाले तथा कर्ता-करण - अधिकरण रूप से सुवर्ण के स्वरूप को धारण करके प्रवर्तमान पीतत्वादि गुणों और कुण्डलादि पर्यायों से निष्पन्न होने वाले सुवर्ण का मूल साधन रूप से ( पीतत्वादिक गुणों और कुण्डलादि पर्यायों से) for हुआ अस्तित्व स्वभाव है, इसी प्रकार द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से या भाव से मों से और पर्यायों से जो पृथक नहीं दिखाई देने वाले तथा कर्ता-करण अधिकरण रूप से द्रव्य के स्वरूप को धारण करके प्रवर्तमान गुणों और पर्यायों से निष्पन्न होने वाले शुष्य का मूल साधन रूप से गुणों और पर्यायों से निष्पन्न हुआ अस्तित्व स्वभाव है ।
( पीतत्वादिक से और कुण्डलादिक से भिन्न न दिखाई देने वाले सुवर्ण का