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[ पवयणसारो
उसमें (१) समानजातीय वह है, जैसे कि अनेक पुद्गलात्मक द्वयणुक त्र्यणुक इत्यादि ( २ ) असमानजातीय वह है, जैसे कि जीव पुद्गलात्मक देव, मनुष्य इत्यादि । गुण द्वारा आयतरूप अनेकता की प्रतिपत्ति की कारणभूत गुणपर्याय है। वह भी दो प्रकार है । ( १ ) स्वभावप्रर्याय, ( २ ) विभावपर्याय। उसमें समस्त द्रव्यों के अपने-अपने अगुरुलघुगुण द्वारा प्रतिसमय प्रगट होने वाली षट्स्यानपतित हानि- वृद्धि रूप अनेकतत्व की अनुभूति स्वभाव पर्याय है, रूपादि के या ज्ञानाति के स्वपर के कारण वर्तमान पूर्वोत्तर अवस्था में होने वाले तारतम्य के कारण देखने में आने वाले स्वभाव विशेषरूप अनेकत्व से आ पड़ने वाली विभागपर्याय है ।
अब यह (पूर्वोक्त) कथन को दृष्टान्त से दृढ़ करते हैं जैसे सम्पूर्ण पट अवस्थायी ( स्थिर) विस्तार सामान्य समुदाय से (चौड़ाई से ) और दौड़ते ( बहते, प्रवाह रूप कालक्रम से चलते हुये ) आयत सामान्य समुदाय से ( लम्बाई से ) रचित होता हुआ तन्मय ही है, इसी प्रकार सब हो पदार्थ 'द्रव्य' नामक अवस्थायी विस्तार सामान्य समुदाय से और दौड़ते हुये आयत सामान्य समुदाय से रचित होता हुआ ब्रध्यमय ही है । और जंसे पट में, अवस्थायो विस्तार सामान्य समुदाय या दौड़ते हुये आयत सामान्यसमुदाय (रूप पद) गुणों से रचित होता हुआ गुणों से पृथक् नहीं प्राप्त होने से गुणात्मक हो है, उसही प्रकार से पदार्थों में, अवस्थायी विस्तार सामान्य समुदाय या दौड़ता हुआ आयत सामान्य समुदाय जिसका नाम 'द्रथ्य' है यह - गुणों से रचित होता हुआ गुणों से पृथक नहीं प्राप्त होने से गुणात्मक ही है । और जैसे अनेक घटात्मक ( एक से अधिक वस्त्रों से निर्मित) द्विपटिक, + त्रिपटिक समानजातीय द्रव्य-पर्याय है, उसी प्रकार अनेक पुद्गलात्मक द्वि-अणुक, त्रिअणुक आदि समानजातीय द्रव्यपर्याय है और जैसे अनेक रेशमी और सूती पटों के बने हुए द्विपटिक, त्रिपटिक ऐसी असमानजातीय द्रव्यपर्याय है, उसी प्रकार अनेक जीव पुद्गलात्मक देव, मनुष्य ऐसी असमानजातीय द्रव्य पर्याय है । जैसे कभी पट में अपने स्थूल अगुरुलघुगुण द्वारा कालक्रम से प्रवर्तमान अनेक प्रकार रूप से परिणमित होने के कारण अनेकत्व की प्रतिपत्ति रूप गुणात्मक स्वभावपर्याय है । उसी प्रकार समस्त द्रव्यों में अपने
*—स्व उपादान और पर निमित्त है । + द्विपटिक दो थानों को जोड़कर ( सोंकर) बनाया गया एक वस्त्र (यदि दोनों यान एक ही जाति के हों तो समानजातीय द्रव्यपर्याय कहलाता है, और यदि दो था भिन्न जाति के हों (जैसे एक रेशमी और दूसरा सूती) तो असमान जातीय द्रव्यप्रयय कहलाता है ।
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