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पक्यणसारो ]
[ १६७ कुण्डलादयः पर्यायाः । एवमन्यत्रापि । यथा चैतेषु सुवर्णपोतताविपुणकुण्डलादिपर्यायेषु पीतताविगुणकुण्डलादिपर्यायाणां सुवर्णादपधम्मावात्सुवर्णमेवथात्मा तथा च तेषु द्रव्यगुणपर्यायेषु गुणपर्यायाणां द्रव्यादपृथग्भावाद्रव्यमेयात्मा ॥७॥
__ भूमिका----अब, जिनेन्द्र के शब्दब्रह्म में पदार्यों को व्यवस्था (स्थिति) किस प्रकार है, सो विचार करते हैं,
अन्वयार्थ-[द्रव्याणि] द्रव्य [गुणाः] गुण [तेषां पर्यायाः] और उन द्रव्यों और गुणों की पर्यायें [अर्थसंज्ञया] अर्थ नाम से [भणिताः] कहे गये हैं। उनमें [गुणपर्यायाणां आत्मा द्रव्यं] गुण पर्यायों का आत्मा [तदात्मरूप आधार] द्रव्य है [इति उपदेशः] ऐसा उपदेश है।
टीका—द्रव्य, गुण और पर्याय, अभिधेयभेद होने पर भी अभिधान का अभेद होने से, 'अर्थ' हैं [अर्थात् द्रव्य, गुण, पर्यायों में वाच्य का भेद होने पर भी वाचक में भेद न रखें तो 'अर्थ' ऐसे एक ही वाचक (शब्द) से ये तीनों कहे जाते हैं ।] उनमें (उन द्रव्य, गुण और पर्यायों में), जो गणों को और पर्यायों को प्राप्त करते हैं अथवा जो गुणों पर्यायों को प्राप्त करते हैं अथवा जो गुणों और पर्यायों को प्राप्त करते हैं अथवा जो गुणों और पर्यायों के द्वारा प्राप्त किये जाते हैं, ऐसे 'अर्थ' द्रव्य हैं। जो द्रव्यों को आश्रय-पने से प्राप्त करते हैं अथवा जो आश्रय भूत द्रव्यों के द्वारा प्राप्त किये जाते हैं, 'अर्थ' गुण हैं। जो द्रव्यों को क्रमपरिणाम से प्राप्त करते हैं, अथवा जो द्रव्यों के द्वारा क्रमपरिणाम से प्राप्त किये जाते हैं, ऐसे 'अर्थ' पर्याय हैं। जैसे वास्तव में जो (सुवर्ण) पीलापन इत्यादि गुणों को और कुण्डल इत्यादि पर्यायों को प्राप्त करता है अथवा उनके द्वारा प्राप्त किया जाता है वह स्वर्ण पदार्थ द्रव्य के स्थान पर है। जैसे (जो) सुवर्ण को आश्रय-पने से प्राप्त करते हैं, अथवा आश्रयभूत सुवर्ण के द्वारा प्राप्त किये जाते हैं वे पदार्थ पीलापन आदि गुण हैं और जैसे (जो) सुवर्ण को कम-परिणाम से प्राप्त करती हैं अथवा सुर्वण के द्वारा उस क्रम परिणाम से प्राप्त की जाती हैं वे पदार्थ कुण्डल आदि पर्यायें हैं। इसी प्रकार अन्यत्र भी है (इस दष्टान्त की भांति सर्व द्रव्य, गुण, पर्यायों में भी समझना चाहिये)। और जैसे उन सुवर्ण, पीलापन इत्यादि गुण और कुण्डल इत्यादि पर्यायों में पीलापन आदि गुण और कुण्डल इत्यादि पर्यायों के सुवर्ण से अपृथक्पना होने से, सुवर्ण हो आत्मा है, उसी प्रकार उन द्रव्य गुण पर्यायों में, गुण-पर्यायों का आत्मा, द्रव्य से अपथकपना होने से, द्रव्य ही है ॥७॥