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[ पवयणसारो
प्रत्येक द्रव्य की अनन्तपर्यायें होती हैं क्योंकि काल के समय पुद्गलद्रव्य से भी अनन्तानन्त गुणे हैं। यह सब ज्ञेय - जानने योग्य हैं और इनमें एक कोई भी विशेष जीवद्रव्य ज्ञाता जानने वाला है। ऐसा ही वस्तु का स्वभाव है । यहाँ जंसे अग्नि सब जलाने योग्य ईंधन को जलाती हुई सब जलाने योग्य कारण के होते हुए सब ईंधन के पर्याय में परिणमन करते हुए सर्वमग्री एक अग्निस्वरूप हो जाती है अर्थात् वह अग्नि उष्णता में परिणत तृण व पत्तों आदि के आकार अपने स्वभाव को परिणमाती है । तैसे यह आत्मा सर्व ज्ञेयों को जानता हुआ सर्व ज्ञेयों रूप कारण के होते हुए सर्वोपरिन करते हुए सर्वमयो एक अखंडज्ञानरूप अपने ही आत्मा को परिणमाता है अर्थात् सबको जानता है, और जैसे वही अग्नि पूर्व में कहे हुए ईंधन को नहीं जलाती हुई उस ईंधन के आकार नहीं परिणमन होती है तँसे ही आत्मा भी पूर्व में कहे हुए सर्व ज्ञेयों को न जानता हुआ पूर्व में कहे हुए लक्षण रूप सर्व को जानकर एक अखड ज्ञानाकार रूप अपने हो आत्मा को नहीं परिणमाता है अर्थात् सर्व का ज्ञाता नहीं होता। दूसरा भी एक उदाहरण देते हैं । जैसे कोई अन्धा पुरुष सूर्य से प्रकाश ने योग्य पदार्थों को नहीं देखता, दीपक से प्रकाश ने योग्य पदार्थों को न देखता हुआ दीपक को भी नहीं देखता, दर्पण में झलकती हुई परछाई को न देखते हुए वर्पण को भी नहीं देखता, अपनी हो दृष्टि से प्रकाशने योग्य पदार्थो को न देखता हुआ हाथ, पैर आदि अंग रूप अपने ही अपने को अपनी दृष्टि से नहीं देखता है । तैसे इस प्रकरण में प्राप्त कोई आत्मा भी केवलज्ञान से प्रकाशते योग्य पदार्थों को नहीं जानता हुआ सकल अखंड एक केवलज्ञानरूप अपने आत्मा को नहीं जानता है। इससे यह सिद्ध हुआ कि जो सबको नहीं जानता है वह अपने आत्मा को भी नहीं जानता है ।
देह के आकार को अर्थात्
विशेष - यदि यहाँ पर कोई शंका करे कि ६ माह = समय में ६०८ जीव मोक्ष जाते रहते हैं । जीवों से काल अनन्तगुणा है, अत: सब भव्य जीव मोक्ष चले जायेंगे । सो यह शंका ठीक नहीं है। ऐसा नियम है कि सब वस्तु प्रतिपक्ष सहित होती हैं । इसलिये सब भव्य जीवों के मुक्त हो जाने पर भव्य जीवों का अभाव हो जायगा । भध्य जीवों के अभाव होने पर उनके प्रतिपक्षी अभव्य जीवों का भी अभाव हो जायगा । भव्य और अभव्य जीवों का अभाव होने पर संसारी जीवों का भी अभाव हो जायगा । संसारी जीवो का अभाव होने पर उनके प्रतिपक्षी मुक्त जीवों का भी अभाव हो जायगा । इस प्रकार जीव मात्र के अभाव का प्रसंग आ जायगा । [ धवल पु० १४ १० २३३-३४] ॥