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[ पधरणसारो पने से ग्रहण करके प्रवर्तता है। (इस प्रकार) प्रवर्तता हुआ (यह ज्ञान) (१) सप्रदेशो को ही जानता है क्योंकि वह स्थूल को जानने वाला है, अप्रवेशी को नहीं जानता, (क्योंकि वह सूक्ष्म को जानने वाला नहीं है । (२) मूर्तिक को ही जानता है क्योंकि वैसे उसका (मूर्तिक) विषय के साथ सम्बन्ध का सद्भाव है, अमूर्तिक को नहीं जानता, (क्योंकि अमूर्तिक विषय के साथ सम्बन्ध का अभाव है, (३) वर्तमान को ही जानता, क्योंकि वहाँ ही विषय-विषयी के सन्निपात का सद्भाव है। भूत में प्रवर्तित हो चुकने वाले को और भविष्य में प्रवृत्त होने वाले को नहीं जानता, (क्योंकि भूत-भविष्य के साथ विषय-विषयी के सन्निकर्ष का अभाव है)। .
जो अनाबरण अनिन्द्रियज्ञान है उसके, जैसे प्रज्वलित अग्नि के अनेक प्रकारता को धारण करने वाला बाह्य (ईन्धन), वाह्यता का उल्लंघन न करने के कारण दाह्य ही है, वैसे (ही) अप्रदेशी, सप्रदेशी, मूर्तिक, अमूर्तिक तथा अनुत्पन्न एवं व्यतीत पर्याय समूह, अपनी ज्ञेयता का उल्लंघन न करने से, ज्ञेय ही हैं ॥४१॥
तात्पर्यवृत्ति अथातीन्द्रियज्ञानमतीतानागतसूक्ष्मादिपदार्थान जानातीत्युपदिशति,
अपवेसं अप्रदेश कालाणुपरमाण्वादि सपदेस शुद्धजीवास्तिकायादिप चास्तिकायस्वरूप मुत मूर्त पुद्गलद्रव्यं अमुतं च अमूर्त च शुद्धजीवद्रव्यादि पज्जयमजादं पलयं गयं च पर्यायमजात भाविनं प्रलयं गतं चातीतमेतत्सर्वं पूर्वोक्तं ज्ञेयं वस्तु जाणवि जानाति यदज्ञानं कर्तृ णाणमणिवियं भणियं तदज्ञानमतीन्द्रियं भणितं तेनैव सर्वज्ञो भवति । तत एव च पूर्वगाथोदितमिन्द्रियज्ञानं मानसज्ञानं च त्यक्त्वा ये निर्विकल्पसमाधिरूपस्वसंवेदनज्ञाने समस्तविभावपरिणामत्यागेन रति कुर्वन्ति त एव परमाहलादकलक्षणसुखस्वभाव सर्वज्ञपदं लभन्ते इत्यभिप्रायः॥४॥
एवमतीतातागतपर्याया वर्तमानज्ञाने प्रत्यक्षा न भवन्तीतीति बौद्धमतनिराकरणमुख्यत्वेन गाथात्रयं, तदनन्तरमिन्द्रियज्ञानेन सर्वज्ञो न भवत्यतीन्द्रियज्ञानेन भवतीति नैयायिकमतानुसारिशिष्यसंबोधनार्थ च गाथाद्वयमिति समुदायेन पञ्चमस्थले गाथापञ्चकं गतम्।
उस्थानिका-आगे कहते हैं कि अतीन्द्रिय रूप केवलज्ञान ही भूत-भविष्य को व सूक्ष्म आदि पदार्थों को जानता है।
अन्वय सहित विशेषार्थ-जो ज्ञान (अपवेसं) बहु प्रदेश-रहित कालाणु व परमाणु आदि को (सपदेस) बहु-प्रदेशी शुद्ध जीव को आवि ले पांच अस्तिकायों के स्वरूप को (मुत्तं) मूर्तिक पुद्गल द्रव्य को (च अमुक्त) और अमूर्तिक शुद्ध जीव आदि पांच व्रव्यों को (आजाद) अभी नहीं उत्पन्न हुई होने वाली (च पलयं गयं) और छूट जाने वाली भूतकाल