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* पाश्र्श्वनाथ चरित्र #
लिया है और अपना भेद खुलनेके डरसे ही मेरी इतनी ख़ातिर करता है ।
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सज्जनकी यह बातें सुन राजा व्याकुल होकर सोचने लगे,— “ओह ! यह तो बड़ाहो गोलमाल हो गया। इसने मेरी प्रतिज्ञाका लाभ उठाकर मेरी पुत्रीसे ब्याह करके मेरे कुलमें दाग़ लगा दिया। इसलिये इस पापी जामाताको दण्ड देना चाहिये ।” यही सोच राजाने अपने सुमति नामक मन्त्रोको बुलाकर सारी बातें कह सुनानेके बाद कहा, "इसको दण्ड देनेकी व्यवस्था करो ।” प्रधानने कहा, – “अच्छा या बुरा कोई काम करनेके पहले परिडतोंको उसके परिणामपर विचार करना चाहिये; क्योंकि उतावलेपनसे किया हुआ काम मरणपर्यन्त दिलमें खटकता रहता है। इसलिये आप जल्दबाज़ी न करें ।” मन्त्रीके मना करनेसे राजा उस समय तो चुप हो गये। किन्तु मन-हो-मन कुमारके सम्बन्धमें अनिष्ट सोचते रहे। निदान एक दिन राजाने अपने कुछ हुक्मी बन्दोंको बुला कर कहा, "आज रातको जो कोई महलके अन्दरवाले रास्तेसे अकेला आता दिखाई दे, उसे तुम लोग बिना कुछ पूछे ताछे मार डालना । " उन लोगोंने कहा,- “जो हुक्म !” यह कह वे सब वहीं एक गुप्त स्थानमें छिप रहे । रातको राजाने अपना एक आदमी कुमारको बुलानेके लिये उनके पास भेजा । उस आदमीने कुमारसे जाकर कहा - " हे स्वामी ! किसी ज़रूरी कामके लिये राजाने आपको महलके अन्दरवाले रास्तेसे इसी समय बुलाया है, इसलिये आप तुरत अकेले चले चलिये।” यह सुन कुमार खङ्ग हाथमें लिये हुए
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