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* पाश्वनाथ चरित्र #
“बिना बिचरे जो करे, सो पाछे पछिताय । काम बिगारे आपुनो, जगमें होत हँसाय ॥” हंसीके इस तरह समझानेपर भी अपनी उदारताके कारण हंसने कहा, कि थोड़ी देरेके लिये चला जाता हूँ; इसमें क्या हर्ज है ? यह कह वह कौए के साथ उसके जंगलमें चला गया। वहाँ पहुँच कर वे दोनों नीमके पेड़पर बैठ रहे। इतनेमें पासके नगरके राजा अश्वकोड़ा करते हुए थके-माँदे उसी पेड़के नीचे आकर बैठ गये । कौएने उसी समय अपने स्वभावानुसार राजाके सिरपर बीट करदी और उड़ गया। हंस वहीं बैठा रहा, इसी समय राजाके एक आदमीने उस हंसको तीर मारकर नीचे गिरा दिया। उसे गिरते देख राजाने कहा, -- “ वाह ! कौआ तो हंस जैसा मालूम पड़ता है ।" औरोंने भी यही बात कही। उन लोगोंकी बात सुन अपनी जातिका दूषण निवारण करनेके लिये हंसने कहा :
हं को महाराज ! हंसोऽहं विमले जले ।
नीच संग प्रसंगेन, मृत्यु मुखे न संशयः ॥
अर्थात् - "महाराज ! मैं कौआ नहीं हूँ; बल्कि निर्मल जलके रहनेवाला हंस हूँ; परन्तु नीचकी सङ्गतिके प्रभावसे आज मैं यों मुफ्त मारा गया ।”
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उसकी यह बात सुन दयावान् राजाने भी उसी दिनसे नीचोंकी सङ्गति छोड़ दी । इसलिये हे प्रियतम ! मैं आपको बार-बार मना करती हूँ । बुद्धिमान् जन कभी-कभी स्त्रियोंकी भी अच्छी सलाह मान लिया करते हैं। क्या पथिक जन बायीं ओर मिलनेवाली गौरैया ( चिड़िया ) की प्रशंसा नहीं करते ?”