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* पार्श्वनाथ-चरित्र * का सोच न करो। मुझे यह सब कुछ तुम्हारी ही मददसे मिला है। यदि तुमने मेरी धैसी हालत नहीं कर दी होती तो मैं यहाँ क्योंकर आता और स्त्रीके साथ-साथ राज्य क्योंकर पाता, इस लिये यह तुम्हारा ही उपकार है। अब तुम सानन्द यहींपर रहो और प्रधानकी पदवी ग्रहण कर मुझे निश्चिन्त करो।" इसके बाद सज्जन वहाँ आनन्दसे रहने लगा।
एक दिन स्वभावसे हो चतुर राजकुमारोने उसकी दुष्टता परखकर राजकुमारसे कहने लगी,-"स्वामी! यद्यपि कुलीन स्त्रियोंके लिये यह उचित नहीं है, कि अपने स्वामीको शिक्षा दे। तथापि आपका स्वभाव बहुत भोला भाला है, इसलिये कुछ कहनेकी आवश्यकता मालूम पड़ती है। स्वामी ! इस सज्जन नामक मनुष्यकी सङ्गति करनी आपके लिये उचित नहीं है । यदि आपका इसपर प्रेम हो, तो इसे कुछ धन या जगह-जमीन भले ही दे डालिये ; पर इसको पास हरगिज मत रखिये। साँपको दूध पिलानेसे उसका जहर बढ़ता ही है। अग्नि तजोमय होनेपर भी लोहेका साथ होनेके कारण उसे घनकी मार सहनी पड़ती है। कहा भी है कि, तपते हुए लोहेपर पड़े हुए जलका नाम भी नहीं मालूम पड़ता ; वही जल कमलके पत्तेपर मोतीकी तरह झलकता है और वही यदि स्वाति-नक्षत्रमें समुद्रकी सोपीके मुहमें पड़ जाय, मोती पैदा करता है ; हर प्रकारके उत्तम, मध्य और अधम गुण सङ्गतिसे ही प्राप्त होते हैं। इसी लिये सज्जनोंको नीचोंकी सङ्गति कभी सुख देनेवाली नहीं होती। नीतिमें एक दृष्टान्त दिया