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अग्गवती
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अग्गलसीसमोलुव्ह ठत्वा आनन्दस्स रोदिताधिकारं व. म. वं. टी. 506; - सूचि स्त्री०, द्वार की सिटकिनी की सुरक्षा के लिए लगायी गयी कील या खूंटी या कुञ्जी - चिं द्वि० वि. ए. व. अग्गळसूचि गहेत्वा सीसे पहारं अदासि, म. नि. 1.178. अग्गवती स्त्री. [अग्रवती ]. प्रथम वर्ग की श्रेष्ठ, उत्तम मनुष्यों वाली कतमा च भिक्खने, अग्गवती परिसा, अ. नि. 1 (1).87; अग्गवतीति उत्तमपुग्गलवती, अग्गाय वा उत्तमाय वा पटिपत्तिया समन्नागता, अ. नि. अट्ठ. 2.44; विलो. अनग्गवती.
अग्गवंस पु०, सद्द, के लेखक, 1154 ईस्वी में वर्तमान प्रख्यात बर्मी वैयाकरण का नाम ततिय-अग्गपण्डितो पन अग्गवंसो ति पि वोहारीयति, सा. वं. 71; अग्गवंसो नाम थेरो सद्दनीतिपकरणं अकासि, सा. वं. 70-71. अग्गवन्दन नपुं. [अग्रवन्दन] प्रातःकालिक प्रथम अभिवादन या नमस्क्रिया प्रातःकालिक प्रथम नमन नं द्वि. वि. ए. व.- जेतवनसमीपे तित्थियारामे वसित्वा पातोव अग्गवन्दनं वन्दिस्साम जा. अड्ड. 4.167, स्त्री अग्गवन्दना. अग्गवर त्रि, श्रेष्ठतम अग्रतम, सर्वोत्तम गच्छन्तु अग्गवरं सहदस्सन, दी. वं. 6.68.
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अग्गवाद पु., [अग्रवाद ], मूल सिद्धान्त, उत्तम - सिद्धान्त (थेरवाद के विशे. के रूप में प्रयुक्त)- सब्बोपि सो थेरवादो अग्गवादोति वुच्चति, दी. वं. 4.13, 5.14; तुल० 5.52. अग्गवादी त्रि, उत्तम वाद को कहने वाला, परमार्थसत्य का प्रकाशक- दिनो दायादको हेहिसि ..... अग्गवादिनो, थेरगा० 1145. अग्गसन्तिके अ० श्रेष्ठ व्यक्ति से अग्गसन्तिके गहेत्वा
अग्गधम्मा तथागता, दी. वं. 4.13. अग्गसभाव त्रि.. ब. स. [ अग्रस्वभाव] उत्तम प्रकृति वाला, श्रेष्ठ स्वभाव वाला अग्गपकतिमाति अग्गसभावो, जा.
अट्ठ. 5.347.
अग्गसस्स नपुं, कर्म. स. [ अग्रशस्य ] उत्तम फसल अच्छी कृषि या पैदावार - अग्गसस्स अभिनिप्फन्न मि. प. 8: • दान नपुं, तत्पु० स., उत्तम कृषि उत्पादों अथवा खाद्यान्नों का दान गामवासीहि सद्धिं अग्गसस्सदानं नाम अदासि, ध. प. अट्ठ. 1.57. अग्गसाखा स्त्री. तत्पु. स. [ अग्रशाखा ] वृक्ष अथवा पौधे का शीर्ष भाग, सब से ऊपर वाली शाखा - तस्मिं समये मूलतो पट्ठाय याव अग्गसाखा सब्बं एकपालिफुल्लं अहोसि जा. अट्ठ. 1.63.
अग्गाळव
अग्गसावक पु. कर्म. स. [ अग्रश्रावक]. बुद्ध के प्रधान शिष्य, परम्परा में सभी बुद्धों के दो प्रधान शिष्य बतलाये गये हैं, गौतम बुद्ध के दो अग्रश्रावक के रूप में सारिपुत्त एवं मोग्गल्लान के नाम उल्लिखित एते भिक्खवे द्वे सहायका आगच्छन्ति कोलितो च उपतिस्सो च एतं मे सावकयुगं भविस्सति अग्गं महयुगन्तिं थ. प. अड्ड. 1.56 अग्गसावको उपतिस्सो नाम थेरो, दुतियसायको कोलितो नाम, जा. अड. 1.19 द्वान नपुं, कर्म, स., प्रधान शिष्य के रूप में स्थान द्विन्नं थेरानं अग्गसावकट्ठानं दत्वा पातिमोक्ख उदिसि प. प. अनु. 1.56 - वत्थु ध. प. अड. की एक कथा का शीर्षक थ. प. अड्ड. 1.49-66 तुल सावकरण एवं सावकयुग.
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अग्गसाविका स्त्री. [अग्रश्राविका] बुद्ध की प्रथम या प्रधान स्त्री-शिष्याएं - खेमा उप्पलवण्णाति द्वे अग्गसाविका, ध. प. अड. 1. 193 अग्गसाविका खेमा नाम थेरी दुतियसाविका उप्पलवण्णा नाम थेरी भविस्सति, जा. अट्ठ. 1. 19-20. अग्गसिस्स पु. कर्म. स. [ अग्रशिष्य ] प्रथम या ज्येष्ठतम शिष्य, प्रधान शिष्य अहं पोक्खरसातिस्स जेद्वन्तेवासी अग्गसिस्सो. सु. नि. अ. 2.167.
अग्गसुञ्ञ नपुं., कर्म, स. [ अग्रशून्य], निर्वाण, अमृतपद अग्गमेतं पदं सेट्ठमेतं पदं ... यदिदं ... तण्हक्खयो विरागो निरोधो निब्बानं इदं अग्गसुज्ञ पटि. म. 354. अग्गसेडि पु. कर्म. स. [ अग्रश्रेष्ठिन् ] प्रधान व्यापारी, प्रमुख श्रेष्ठी इमरिगंयेव नगरे अग्गसेहि अभविस्स. ध. प. अ.
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2.72.
अग्गहित / अग्गहीत त्रि. गह (गण्ड) के भू. क. कृ. का निषे [ अगृहीत ], वह जिसे ग्रहण नहीं किया गया है, पकड़ा नहीं गया है तो पु. प्र. वि. ए. व. असि कोसिया पक्खित्तो अग्गहितो हत्थेन उस्सहति छेज्जं छिन्दितुं मि. प. 92.
अग्गा अ अग्ग का प. वि. प्रतिरू, निपा, छोर तक अन्त तक, अग्रभाग तक तानि याव चग्गा याव च मूला सीतेन वारिना अभिसन्नानि..., दी. नि. 1.66. अग्गामा स्त्री. तत्पु. स. [ अग्न्याभा] अग्नि की आभा, अग्नि का प्रकाश, आग की चमक- चन्दाभा, सूरियाभा, अग्गाभा, इमा खो, भिक्खवे, चतस्सो आभा, अ. नि.
पञ्ञाभा 1(2).160. अग्गाळव पु० / स्त्री० / नपुं अग्ग + आळवी, अग्ग + आळवक, आलवी - जनपद में विद्यमान एक प्रमुख चैत्य, जो कालान्तर में विहार के रूप में परिणत हो गया वे नपुं०, सप्त, वि०,