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अग्गयान
अग्गपुफिय अग्गपुप्फिय पु., एक थेर का नाम - आयस्मा अग्गपुफियो
थेरो इमा गाथायो अभासित्थाति, अप. 1.243. अग्गपुरोहित पु., कर्म. स. [अग्रपुरोहित], पुरोहितों में श्रेष्ठ या प्रथम - अहञ्च अग्गपुरोहितो भविस्सामीति, जा. अट्ठ. 6.221. अग्गप्पत्त त्रि., तत्पु. स., पूर्णता या श्रेष्ठता को प्राप्त व्यक्ति - त्ता पु., प्र. वि., ब. व. - न खो, निग्रोध, एत्तावता तपोजिगुच्छा अग्गप्पत्ता च होति सारप्पत्ता च, दी. नि. 3.35; - त्तेन तृ. वि., ए. व. - तेनायं अग्गप्पत्तेन,
अग्गधम्मो सुदेसितो, थेरगा. 94. अग्गप्पसाद पु., कर्म. स. [अग्रप्रसाद], सर्वोत्तम श्रद्धा का विषय या आलम्बन, वह, जिसके प्रति उत्तम श्रद्धा का भाव रखा जाए - दा प्र. वि., ब. व. - इमे खो, भिक्खवे, चत्तारो अग्गप्पसादा, अ. नि. 1(2).41; - टि. बुद्ध, अष्टाङ्गिक-मार्ग, धर्म और सङ्घ इन चारों को चार अग्गप्पसाद कहा गया है, द्रष्ट. अग्गप्पसादसुत्त. अग्गफल नपुं, कर्म. स. [अग्रफल], सर्वोत्तम फल, अर्हत्वफल -- लं द्वि. वि., ए. व. - सूलावुतो अग्गफलं अफस्सयि, पे. व. 603; इमानि अग्गफलं अरहत्तं पापुणन्तस्स निरुज्झन्ति, नेत्ति. 15. अग्गबाहु स्त्री. कर्म. स., प्रकोष्ठ, प्रबाहु, पहुंचा, भुजा का अग्रभाग - द्वि नपुं., भुजा के अग्रभाग की हड्डी-ट्ठीनि प्र. वि., ब. क. - द्वे बाहुट्ठीनि, द्वे द्वे अग्गबाहुटीनि विसुद्धि. 1.244. अग्गबीज नपुं., कर्मस. [अग्रबीज], वह पौधा, जिसे काटकर या टुकड़े-टुकड़े कर रोप कर बढ़ाया जाय, काटकर रोपा गया या बढ़ाया गया पौधा, दी. नि. में वर्णित पांच प्रकार के पौधों में से एक प्रकार का पौधा - सेय्यथिदं - मूलबीजं खन्धबीजं, फळुबीजं अग्गबीजं बीजबीजमेव पञ्चम, दी. नि. 1.57; अग्गबीजं नाम अज्जकं, फणिज्जक, हिरिवेरन्ति एवमादि, दी. नि. अट्ठ. 1.75; तुल. बीजग्ग. अग्गबोधि पु., क. 564-596 ईस्वी में वर्तमान सिंहल के राजा का नाम - अहोसि पुत्तो सीवस्स अग्गबोधि सनामको, चू. वं. 41.70; ख. राजा उदय के अधीन मलय के राज्यपाल का नाम - कतं मलयराजेन अमच्चन अग्गबोधिना, चू. वं. 53.36; - पब्बत त्रि., ब. स., एक तालाब का नाम - मण्डवाटकवापी च कित्तग्गबोधिपब्बता, चू. वं. 60.49. अग्गभक्ख पु., कर्म. स. [अग्रभक्ष्य], उत्तम भोजन, मुख्य भोजन - क्खं द्वि. वि., ए. व. - यस्मा पनाहं एवरूपं
अग्गभक्खं दिस्वापि ... पापं न करोमि, जा. अट्ठ. 7.148. अग्गभत्त नपुं०, कर्म, स., प्रथम भोजन, उत्तम या चुनिन्दा भोजन - त्तं द्वि. वि., ए. व. - भिक्खुना अग्गभत्तं अदत्वा, ध. प. अट्ठ. 1.382; जा. अट्ठ. 1.138; तुल. भत्तग्ग. अग्गभाव पु., कर्म. स. [अग्रभाव], श्रेष्ठता, उत्तमभाव -स्स ष. वि., ए. व. - ... तेरसधुतङ्गधरानं अग्गभावस्स सच्चकारो होतूति, अ. नि. अट्ठ. 1.131; तुल. अनेकग्गभाव. अग्गभिक्खा स्त्री., कर्म. स. [अग्रभिक्षा]. भिक्षा में प्राप्त अभीष्टतम भोजन या यथेच्छित भोजन -क्खं द्वि. वि., ए. व. - यत्थ अग्गभिक्खं पक्खिपित्वा ठपेन्ति .... म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).357. अग्गमग्ग 1. त्रि., [अग्राग्र], हर तरह से उत्तम या श्रेष्ठ - ग्गानि नपुं., वि. वि., ब. व. - ... अग्गमग्गानि भोजनानि देन्ति, पाचि. 311, 313; 2. पु., [अग्रमार्ग], सर्वोत्तम मार्ग, अब तक गृहीत मार्गों की तुलना में अधिक उत्तम - ग्गो पु., प्र. वि., ए. व. - अनागामिनो हि यथा अग्गमग्गो उप्पज्जति, थेरीगा. अट्ठ. 21; - समङ्गी त्रि., बुद्ध के मार्ग की उच्चतम अवस्था अर्थात् अर्हत्व को प्राप्त - अग्गमग्गसमङ्गी वेदनाक्खन्धं न परिजानिस्सति, यम. 1.105. अग्गमहेसी स्त्री., कर्म. स. [अग्रमहिषी], पटरानी, प्रमुख पत्नी, प्रधान रानी - सी प्र. वि.. ए. व. - एसा ... इत्थी कलिङ्गस्स रो अग्गमहेसी अहोसि, स. नि. 1(2).236; - सिया त. वि., ए. व. - सा ... धनञ्जयसेट्टिनो अग्गमहेसिया सुमनदेविया कुच्छिम्हि निब्बत्ति, ध. प. अट्ठ. 1.216; ... बोधिसत्तो रुओ अग्गमहसिया कुच्छिम्हि निब्बत्तो, जा. अट्ठ. 1.254; - सिट्ठान नपुं.. तत्पु. स., प्रधान पत्नी अथवा रानी के रूप में स्थान या पद - पञ्च ते इत्थिसतानि परिवार दत्वा अग्गमहेसिट्टानं दस्सामी ति, ध. प. अट्ठ. 1.113; - सित्त नपुं., भाव. [अग्रमहेषित्व], प्रधान पत्नी अथवा रानी होने की अवस्था - ... रुओ चन्दपज्जोतस्स अग्गमहिसित्तं पत्ता, मि. प. 269, (पाठा. अग्गमहेसिट्ठान); - भाव पु.. उपरिवत् - स्स ष. वि., ए. व. - सा एकदिवसं द्विन्न राजूनं अग्गमहेसिभावस्स सपिने निमित्तं दिस्वा.... जा. अट्ठ. 5.440. अग्गमाला स्त्री., कर्म. स. [अग्रमाला], उत्कृष्ट माला, श्रेष्ठ माला -लं द्वि. वि., ए. व. - यथा सो अग्गमाल अग्गपुष्फ
अग्गभत्तञ्च लभति ..., जा. अट्ठ. 1.138. अग्गयान नपुं, कर्म. स. [अग्रयान], प्रधान यान, प्रधान
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