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चन्द्रसूर्यग्रहणफलम्
(३९) पश्चात् संजायते मेघोऽरिष्टभङ्गं तदादिशेत् ॥२०९॥ एवमुत्पातरहिते यस्मिन्नुदकयोनिकाः । जीवा वा पुद्गला दृश्यास्तद्देशे वृष्टिरुत्तमा ॥२१०॥ एतेन गर्भाः सर्वेऽपि सूचिता वातवर्जिताः। स्थानाङ्गसूत्रकारेण तेषां नीरात् समुद्भवात् ॥२११॥
यदागमः-चत्तारि दगगब्भापण्णत्ता तंजहा--उस्सा महिया सीया उसिणा । चत्तारि दगगम्भा पण्णत्ता तंजहाहेमगा अब्भसंथडा सीओसिणा पंचरूवियामाहे उ हेमगा गम्भा फग्गुणे अब्भसंथडा। सीओसिगाओ य चित्त वइसाहे पंचरूविया ॥२१२॥
सप्तमे सप्तमे मासे गर्भतः सप्तमेऽहनि । बाद ही वर्षा हो जाय तो सब उत्पात के फल का नाश हो जाता है ॥२०॥ इसी तरह जिस देश में उत्पात रहित जल योनि के जीव या पुद्गल देखने में आवे, उस देश में अच्छी वर्षा होती है ॥ २१० ॥ ये सब वर्षा के गर्भ जल से उत्पन्न होने के कारण स्थानांग सूत्रकार ने वायु रहित सूचित किया ॥ २११ ॥
ओस (धूमस) महिका शीत और उष्ण ये चार प्रकार के उदक गर्भ हैं । मतान्तर से- हिम मेवाडंबर (बादल का समूह) शीत और गरमी ऐसे भी चार प्रकार के हैं । इन प्रत्येक के गर्जना विजली जल वायु और बद्दल, इस तरह पांच पांच प्रकार है । माघ मास में हिम का गिरना, फाल्गुन मास में बादल से आकाश आच्छादिक रहना, चैत्र मास में शीत
और गरमी, तथा वैशाख मास में मेव गर्जना, बिजली, वर्षा, वायु और बादल येच प्रकार के गर्भ का लक्षण होता है ॥२१२॥ गर्भ सात मास और सात दिन में परिपक्क होता है, जैसा गर्भ हो वैसा फल जानना ॥
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