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मेघमहोदये
(१३४)
अथ सद्यो वृष्टिलक्षणम्
बादले रात्रिवासश्चेत् खद्योतेषु निशि युतिः । जलेषु चोष्णता सद्यो मेघवर्षाभिलक्षणम् ॥६७॥ रात्रौ तारा फलत्कारः प्रातश्चात्यरुणो रात्रिः । अवृष्टौ शक्रचापश्च सद्यो वृष्टिस्तदा भवेत् ॥६८॥ वदन्ति भुजगा वृक्षे सूर्येन्दोः परिधिस्तथा । उर्ध्वा चेद् गंडरी शेते लोहे कीहः पुनः पुनः ॥६६॥ आम्लं च तकं तत्कालं मत्स्येन्द्रधनुरुद्गमः । धूम्रिता निविडा शैला-धर्मादिषु तथार्द्रता ॥ १०० ॥ प्रभाते पश्चिमायां चे-दिन्द्रचापः प्रदृश्यते । वारुणैश्चैव नक्षत्रैः शीघ्रं वर्षति माधवः ॥१०१॥ गोमये उत्कराः कीटाः परितापोऽतिदारुणाः । चातकानां रवो वृष्टिं सद्यः स सूचयेज्जने ॥१०२॥
को लांघकर जल कण वर्षा करता है ॥ ६६ ॥
बादलों में अंधकार हो, रात्रि में खद्योत (उडनेवाले चमकदार जंतु ) की प्रकाश अधिक हो और पानिमें उष्णता हो तो शीघ्रही मेघवर्षाका लक्षण जानना ॥ ६७ ॥ रात्रि में तारा गिरे, प्रातः काल सूर्य लालवर्ण वाला हो, और आकाश में विना वर्त्रा इन्द्रधनुष दीखे तो शीघ्र ही वर्षा होती है ॥ ६८ ॥ वृक्ष पर सर्प चढ़े, सूर्य और चंद्रमा को परिधि ( परिमंडल ) हो, उच्चस्थान पर गड्डरी सोवे, लोहे पर वारंवार कीट लगजाय ॥ ६६ ॥ छाशमें खट्टापन शीघ्रही आजाय, जलमत्स्य तथा इन्द्र धनुष का उदय हो, पर्वत धूम वाले होकर घने ( इकट्ठे ) दीखे, चमडा आदिमें गीलापन हो जाय ॥ १ ०० || प्रातः काल पश्चिमदिशा में इन्द्र धनुष दीखे और शतभिषा नक्षत्र हो तो शीघ्रही वर्षा होती है ॥ १०१ ॥ गोबर में अतिदारुण बहुत प्रकार के कीडे हों तथा चातक पक्षी शब्द करे तो शीघ्रही वर्षा होती है ।
"Aho Shrutgyanam"