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(३३२)
मेघमहोदये
निंशतिरथदिवसायमेकतमर्वेण पश्चभ्यः ॥८॥ क्रूरग्रहसंयुक्ते करकाशनिवर्षदायिनो गर्भा:। शशिनि रवौ चापि शुभैर्युनक्षिते भूरि वृष्टिकराः ॥८॥ गर्भसमयेऽतिवृष्टिगर्भाभावाय मित्रखेटकृता । द्रोणाष्टांशाभ्यधिके पृष्ठेगर्भश्च्युतो भवति ॥८॥ गर्भः पुष्टः प्रसवे ग्रहोरघातादिभिर्यदिन पृष्टः । प्रात्मीयगर्भसमये करकामिश्रं ददात्यम्भः ॥८६|| काठिन्यं याति यथा चिरकालधृतं पयः पयस्विन्याः । कालातीतं तद्वत्सलिलं काठिन्यमुपयाति ॥१०॥ पञ्चििमत्तैः शतयोजनं तदर्हार्द्धमेकनो हन्यात् । वर्षति पश्च समन्ताद रूपेणकेन यो गर्भः ॥६॥ हुए गर्भ छः दिन, माघके सोलह दिन, फाल्गुन के चौबीस, चैत्रके वीस दिन और वैशाखके तीन दिन बराबर वर्षा होती है ॥८६॥ यदि गर्भ का नक्षत्र का ग्रह युक्त हो तो समस्त गर्भ से ओले और विजली गिरे तथा वर्षाके साथ मच्छली बरसे । यदि चन्द्रमा या सूर्य शुभग्रह से युक्त हो या शुभग्रह से देखे जाते हो तो बहुतही वर्षा करते हैं ॥७॥ यदि गर्भ के समय विना कारण वहुतसी वर्षा हो तो गर्भका अभाव होता है । द्रोणका अष्टमांशसे अधिक वर्षा हो तो गर्भपात होता है ॥८॥ जो पुष्टगर्भ प्रसत्र के समय ग्रहों के उपचात आदिसे न बरसे तो दूसरे गर्भ ग्रहण के समय पोलेका मिला हुआ जल बरसाता है ॥८६॥ जिस प्रकार गायों का दूध बहुत काल तक रहनेसे कठिन हो जाता है, इसी तरह जल भी वर्षने के समय न बरसे तो कठिन ओले बन जाते हैं ॥६०॥ जो गर्भ पवन जल बिजली गर्जना और वादल' इन पांच प्रकारके निमित्तसे पुष्ट होता है वह सौ योजन तक बरसता है। चार निमित्तसे पचास, तीन निमित्तसे पचीस, दो निमितसे साढ़े बारह और एक निमितसे पांच योजन तक बरसता है ।
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