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मेघमहोदये मधाचतुष्टये सोमेऽप्येषा धान्यमहर्घकृत् ॥१२॥ चित्राष्टके भौमवारे पूर्णिमा व्याधिवर्द्धिनी। दुर्भिक्षाय शनौ शेष-वारःषु शुभावहा ॥१२४॥ तिथिनक्षत्रयोः साम्ये मृगादिधिष्ण्यपञ्चके । पूर्णिमायां विधोर्योगे तुल्यार्घमशनं भवेत् ॥१२५।। मेषादित्रितये सूर्ये शुभयुक्ते तिथिक्षये। कर्णादौ पूर्णिमायोगे समघे तु हठाद्भवेत् ॥१२६।। आषाढस्याप्यमावस्या यदि सोमवती भवेत् । सुभिक्षं कुरुतेऽवश्य नक्षत्रे मृगसप्तके ॥१२७॥ अथ श्रावणमासः ---- श्रावणे कृष्णपक्षे च प्रतिपद् गुरुयोगतः *। मुगा माषास्तिलास्तैलं महर्घ शीघ्रमादिशेत् ॥१२८॥ श्रावणे नवमीयुक्तः शनिः सन्तापकारकः । धान्य महँगे हों ॥ १२३ ॥ यदि मंगलवार हो और चित्रा आदि माठ नक्षत्रोंमें से कोई नक्षत्र हो तो माधि की वृद्धि हो और शनिवार हो तो दुर्भिक्ष हो । बाकी के बार और नक्षत्र सत्र शुभकारक हैं ॥१२४॥ तिथि और नक्षत्रकी बराबरी पूर्णिमाके दिन मृगशिरादि पांच नक्षत्र और सोमवार हो तो धान्यका समान भाव रहे ॥ १२५ ॥ मेषादि तीन राशि पर सूर्य हो
और वह शुभ नहसे युक्त हो, तिथि का क्षय हो और पूर्णिमा को श्रवणादि दश नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो तो निश्चय से धान्य सस्ते हों ॥ १२६ ॥ भाषाह की अमात्रस सोमवती हो और मृगशिरादि सात नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो तो अवश्य सुभिक्ष होता है ॥१२७॥ इति आषाढमास ||
श्रावण कृण प्रतिपदाके दिन गुरुवार हो तो मूंग, उडद, तिलं और तैल महँगे हों ॥१२८॥ श्रावणकी नवमी शनिवारके दिन हो तो संताप
* एक सनिचर बीज रवि, श्रीजी मंगल होय । गेहूं गोरस सालि पीय,चाखे विरलो कोय ॥१॥
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