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मेघमहोदय,
शनियके जने पीड़ा राहुः स्यादग्निकारकः । चतुग्रहा न वक्राः स्युर्युगपञ्चेति मन्यते ॥१५॥ पाठान्तरे-भौमवक्रे भूपयुद्धं बुधवक्रे धनक्षयः। गुरुवक्रे सुभिक्षं च वक्रे शुक्र प्रजासुखम् ॥१५४॥ शनिवळे महामारी गैरवं च भयं पथि। धनधान्यं च वस्त्रे च रुण्डमुण्डा च मेदिनी ॥१५॥ यत्र मासे ग्रहाः सर्वे वक्रत्वं यान्ति देवतः । तन्मातेऽतिमहर्ष स्यादु धान्यं वा राजविग्रहः ॥१५॥ श्रावणे शनिवक्रत्वे भौमस्यास्तोदयो यदा । तदा युध्यन्ति भूमीशा द्विमासान्तन संशयः ॥१५॥ अतिचारफलम् ~~ . सौम्यैकत्रकोऽप्यशुभातिचारः,
करोति सर्व विपुलं समघम् । ---कोकचक्रश्च शुभातिचारो, ... धान्यं विधत्ते भुवने महर्षम् ॥१५८॥ मनुन्यों में ीडा और राहु के वक्रीमें अग्निका उपद्रव हो । एक साथ चार ग्रह वक्री नहीं होते हैं ऐसी मान्यता है ॥१५३॥ पाठान्तर- मंगल वकी "हो तो राजाओंका युद्ध, बुध की हो तो धन का क्षय, गुरु वक्री हो तो सुभिक्ष, शुक्र वक्री हो तो प्रजा को सुख ॥ १५४ ॥ शनि वक्री हो तो. महामारी, मार्गमें महाभय, धनधान्य और वस्त्र महंगे तथा पृथ्वी रूंडमुंड हो । . .१.५५॥ जिस महीने में देवयोगसेसब ग्रह वक्री हो तो उस महीने में धान्य महँगे हो या राजाओंमें वित्रह हो ॥१५६॥ श्रावणमें शनि वक्री हो और मंगलका: प्रस्त: या उदय हो तो राजाओं दो महीने के भीतर युद्ध करें. इसमें संशयः । नहीं ॥१५॥............... .... ..............
सौम्य एक प्रइ वक्री हो और एक अशुभ मह शीघ्रगामी हो तो सम
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