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भूपालयुद्धं नवमीचतुष्के, दुर्भिक्षवातासुखं तु शेषे । २३८ लोके तु पंडिया छट्टि एकादशी, जो असुरां गुरु उगंति । जल बहुला अन्न मोकला, प्रजा लील करंति ॥ २३९ ॥
कवारफलम्
शुक्रास्तभासफलम्
शुक्रस्यास्तंगमा ज्येष्ठे महापृष्टेः प्रजाक्षयः । आषाढे जलशोषः स्याच्छ्रावो रौरवं महत् ॥ २४० ॥ धनधान्यादिसम्पत्तिर्भवेद्भाद्रपदास्ततः । आश्विनेऽपि सुभिक्षाय कार्त्तिके दृष्टिहेतवे ॥ २४९ ॥ मार्गशीर्षे भूपयुद्धं प्रजानां सुखसम्भवः । पौषे माघे छत्रभङ्गः फाल्गुनेऽग्निभयं महत् ॥ २४२॥ बण्मासानपि दुर्भिक्षं चैत्र वनविनाशनम् । फलं तथैव वैशाखे पीड़ा काचिचतुष्पदे ॥ २४३॥
प्रतिपदा आदि चार तिथियों में शुक्रका उदय हो तो पृथ्वीमें सुख, पंचमी आदि चार तिथियों में हो तो चोरों का उपद्रव, नवमी आदि चार तिथियोंमें हो तो राजाओंमें युद्ध, और बाकी तिथियोंमें दुर्भिक्ष, वायु और कष्ट आदि हों ॥ २३८ ॥ लोक भाषा में भी कहा है कि- पडिवा कुठ और एकादशी इन तिथियों में शुकका उदय हो तो जल अधिक वर्षे और अनाज भी बहुत हो, प्रजामें आनंद रहें ॥२३६॥
ज्येष्ठमास में शुक्रका अस्त हो तो महावर्षा हो और प्रजाका नाश हो । आषाढमें हो तो जल सूक जाय, श्रावण में हो तो बड़ा रौरव (कष्ट) हो ॥ २४० ॥ भाद्रपद में हो तो धन धान्यकी प्राप्ति हो । आश्विन में हो तो सुभिक्ष, कार्तिक में हो तो वृष्टि के लिये हो ॥ २४९ ॥ मार्गशिर में हो तो राजाओं में युद्ध तथा प्रजा को सुख हो । पौष और माघ मास में हो तो छत्रभंग हो, फाल्गुन में बड़ा अशिका भय हो ॥ २४२ ॥ चैत्रमें हो तो छः महीने दुर्भिक्ष रहें तथा वनका विनाश हो । वैशाखमें हो तो दुर्भिक्ष
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" Aho Shrutgyanam"