Book Title: Meghmahodaya Harshprabodha
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 498
________________ मेवमहोदये उषायामश्ववृषभा गजलोहादिधातवः । सर्व व सारवस्त्वाज्यं प्रारव्यथादिनससकम् ॥५३॥ द्राक्षाखजूरपूगैला मुगा जातिफलं हयाः ।। अभिजिछेधतः पूर्वा व्यथा वा दिनसतकम् ॥५४॥ श्रवणेऽखोडचालि पिप्पली पूगवायवम् । तुषधान्यानि वेध्यानि प्राक्शुभं सप्तवासरान् ॥५॥ धनिष्ठायां स्वर्णरूप्य-धातवः सर्वनाणकम् । मणिमौक्तिकरनादि सप्ताहं पूर्वतः शुभम् ।।५६॥ तेलं कोद्रवमयादि धातकीपनमूलकम् । छल्लिः शतभिषग्वेध्यं वारुण्यां मासिकं शुभम् ॥५॥ प्रियङ्गमूलजात्यादि सर्वधान्यानि धातवः । । सर्वोषधं देवदार्याम्यां पीडाऽष्टमासिकी ॥५८॥ पूर्वाभाद्रपदे वेध्यमथोभावेध्यमुच्यते । मास अशुभ रहे ॥ ५२ ॥ उत्तरषाढा में घोडा, बैल, हाथी, लोह आदि. धातु सत्र सार वस्तु और धीको वेधते है, तथा पूर्व में सात दिन व्यथा हो ॥ ५३ ॥ अभिजित् का वेध से द्राक्ष खजूर सोपारी इलायची मूंग जायफल और घोडा को वेधते है तथा पूर्व देश के देश में सात दिन पीडा हो ॥ ५४ ॥ श्रवण में अखरोट ची.जी पीपल सोपारी यत्र तुष धान्य इनको भी वेधत है और पूर्व में सात दिन शुभ रहें ॥५५॥ धनिष्ठामें सोना चांदी आदि धातु, सब प्रकार के द्रव्य, मणि मोती और ग्ल आदिको वेधते है तथा पूर्व में सात दिन शुभ रहें ॥ ५६ ।। शतभिषा में तेल कोद्रव मद्य आद्रि आवला के पत्र मूल और छिलका को वेधते है, तथा पश्चिम दिशा में एक मास शुभ रहें ।। ५७ ॥ पूर्वाभाद्रपदा में वेध हो तो प्रियंगु, मूल, जायफल सब प्रकारके धान्य तथा औषध, देवदारु इनको वेधते है, तथा दक्षिण आठ महीने पीडा रहे ॥ ५८॥ उत्तरा "Aho Shrutgyanam"

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