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- मेवमहादयें मामडलनाश च भूम्यां च कुरुते ग्रहम् । विग्रहं तु विजानीयाच्छून्यं तु मण्डलं भवेत् ॥६॥ कपिलानां शतं हत्वा ब्राह्मणानां शतव्यम् । तत्पापं परिगृहसि यदि मिथ्या बलि हरेत् ।।८०॥ शाल्योदनेन साज्येन कृत्वा पिण्डऽत्रयं बुधः । . समार्जिते शुभे स्थाने स्थापयेन्मन्त्रपूर्वकम् ॥८॥ माहानकरमन्त्रेण पाहयाइलिभोजनम् । स्थाप्यं स्थापनमन्त्रेण पिण्डनयमिदं क्रमात् ।।८२॥
आहानमन्त्री यथा-ॐतुण्डब्रह्मणे सुराय असुरेन्द्राय एहि एहि हिरण्यपुण्डरीकाय स्वाहाः । पिण्डाभिमन्त्रण पधा-ॐ तिरिटि मिरिटि काकपिण्डालये स्वाहाः ।। देशकालपरीक्षार्थ वृषम चायपिण्डके । मितीये तुरंग न्यस्य तृतीये हस्तिनं क्रमात् ॥८३॥ वृषभे चोत्तमकालो मध्यमश्च तुरङ्गमे । हस्तिपिण्डेन जानीयान्महान्तं राजविवरम् ॥८४॥ मंडलका नाश हो, विग्रह हो तथा मंडल शून्य हो ॥७६ ॥
हे कांक: यदि तूं मिथ्या बलिको ग्रहण करें तो एक सौ गौ और दो सौ ब्राह्मयों की हत्याका पाप लगे ॥८०॥ घी मिश्रित अच्छे चावल का सीन पिंड बनाकर अच्छा स्वच्छ स्थानमें मंत्रपूर्वक स्थापन करें ॥८॥ पीछे ॐ तुपटे' इस मंत्र से कौमा को बोलावे, बोलानेसे माया हुमा काक ॐ तिरिटि' इस मंत्र पूर्वक स्थापन किये हुए तीन पिंडोंमेंसे जिस को महण करे उसका क्रमसे फल कहना ॥२॥ देशके काल की परीक्षा के लिये प्रथम पिंडकी वृषभ, दूसरेकी तुरंग और तीसरेकी हाथी, ऐसी जनसे संज्ञा-करें ॥८३॥ वृषभपिंड को ग्रहण करे तो उत्तम समय, तुरंग कोकरे तो-मध्यम समय और इस्तिपिंडको ग्रहण करे तो बड़ा
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"Aho Shrutgyanam"