Book Title: Meghmahodaya Harshprabodha
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

View full book text
Previous | Next

Page 524
________________ (५०४) मेघमहोदये नदीतीरे काकगृहे मेघप्रश् न वर्षणम् । पक्षौ विधूनयन् काको वृक्षाग्रे शीघ्रमेघकृत् ॥६५॥ विना भक्ष्यं काकदृष्टो दुर्भिक्षं दक्षिणादिशि । पीत्वा जलं शिरःपक्षौ धुन्वन् काको जलं वदेत् ॥ ६६ ॥ वर्षा काले महावृष्टिः शीतकाले च दुर्दिनम् । उष्णकाले महाविघ्नं काकस्थानाद विनिर्दिशेत् ॥ ६७॥ बहिस्थाने च पाषाणे पर्वते शिखरे तरोः । भूमौ ग्रामे च नगरे काकस्थानात् फलं स्मृतम् ॥६८॥ वृक्षस्य पूर्वशाखायां वायसः कुरुते गृहम् | सुभिक्षं क्षेममारोग्यं मेघश्चैव प्रवर्षति ॥ ६९ ॥ आग्रेयां वृक्षशाखायां निलयं कुरुते यदि । अल्पोदकास्तथा मेघा ध्रुवं तत्र न वर्षति ||७० || दक्षिणस्यां दिशो भागे वायसः कुरुते गृहम् । हो तो दुर्भिक्ष, राजाभोंमें विग्रह और दक्षिण में छत्रपात हो ॥ ६४ ॥ नदी के तट पर कौमों का घोंसला हो तो वर्षा न बरसे । मेघ के प्रश्न समय यदि कौआ पंख कंपाता हुआ वृक्ष के अग्र भाग में बैठा हो तो शीघ्र ही वर्षा हो ॥ ६५ ॥ भक्षण' विना को देख पड़े तो दक्षिण दिशा में दुर्भिक्ष होता है । कौआ जल पीकर माथा और पंख कंपावे तो जलागमन को कहता है ॥ ६६ ॥ उस समय वर्षाकाल हो तो महावर्षा, शीतकाल हो तो दुर्दिन और उष्णकाल हो महा विघ्न इन की सूचना करता है ॥ ६७ ॥ मन का स्थान, पाषाण, पर्वत, वृक्ष के शिवर, भूमि, गांव और नगर, इन स्थानों में कौएँ के घोंसले परसे फल का विचार करना ॥६८॥ कौवे वृक्षकी पूर्व शाखा में घोंसला करें तो सुभिक्ष, कल्याण और भारोग्य हो तथा मेघवर्षा हो ॥ ६६ ॥ वृक्षकी ममेय शाखा में वोंसला करें तो बादल मोड़े नलवाले हो तथा वर्षा न बरसे ॥ ७० ॥ दक्षिण दिशामें घोंसला "Aho Shrutgyanam"

Loading...

Page Navigation
1 ... 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532