Book Title: Meghmahodaya Harshprabodha
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 519
________________ शकुन निरुमणम् तसीवेतपुष्पैः पलाशकुसुमैश्ा कोद्रवा ज्ञेयाः । तिलकेन शंखमौक्तिकर जतान्यथा चेङ्गदेन शणाः ॥४१॥ करिणश्च हस्तिकर्णैरादेश्या वाजिनोऽश्वकर्णेन । गाव पाटलाभिः कदलीभिरजाविकं भवति ॥४२॥ चम्पककुसुमैः कनकं विद्रुमसम्पच बन्धुजीवेन । कुरुबकवृद्धया वज्रं वैडूर्य नन्दिकावत्तैः ॥४३॥ विन्याच सिन्दुवारेण मौक्तिकं कुंकुमं कुसुम्भेन । रक्तोत्पलेन राजा मंत्री नीलोत्पलेनोक्तः ॥ ४४ ॥ श्रेष्ठी सुवर्णपुष्पैः पद्मेर्विप्राः पुरोहिताः कुमुदै:: सौगन्धिकेन बलपतिरर्केण हिरण्यपरिवृद्धिः ॥४५॥ आत्रेः क्षेमं भल्लातकैर्भयं पीलुभिस्तथारोग्यम् । - खदिरशमीभ्यां दुर्भिक्षमर्जुनैः शोभना वृष्टिः ॥ ४६ ॥ पिचुमन्दनागकुसुमैः सुभिक्षमथ मारुतः कपित्थेन । वेतस के पुष्पसे अलसी, पलास के पुष्पसे कोद्रव, तिलसे शंख मोती तथा चांदी और इंगुदी की वृद्धिसे कुष्टा की वृद्धि हो ॥ ४१ ॥ हस्तिक वनस्पति की वृद्धि हाथियों की, अश्वकर्णसे घोडे की, पाटलसे गौ की और कदली की वृद्धिसे बकरी तथा मेढ़े की वृद्धि होती है ॥ ४२ ॥ चंपा के फूलों से सुवर्ण, दुपहरिया की वृद्धिसे मूंग, कुरुबक की वृद्धिसे वज्र, नंदिकावते की वृद्धिसे वैडूर्य की वृद्धि होती है ॥ ४३ ॥ सिंदुवार की वृद्धिसे मोती, कुसुंभ से कुंकुम, लालकमलपे राजा और नीलकमलसे मंत्री का उदय होता है ॥ ४४ ॥ सुवर्णपुष्प से सेठ (वणिक), कमलोंसे ब्राह्मण, कुमुद्दोंसे राज: पुरोहित, सौगंधिक द्रव्यसे सेनापति, और आक की वृद्धि से सुवर्ण की वृद्धि होती है ॥ ४५ ॥ आमकी वृद्धि से कल्याण, भिलावें से भय, पीलुसे आरोग्य, खैर और शमी से दुर्भिक्ष, और अर्जुन से अच्छी वर्षा इनकी वृद्धि हो ॥ ४६ ॥ पिचुमंद और नागकेसर से सुभिक्ष, कैथ से वायु, निचुल से "Aho Shrutgyanam"

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