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शकुननिरूपणम् वृक्षात् क्षीरश्रावे सर्वद्रव्यक्षयो भवति ।। ५२॥ इति । अथ काकाण्डानि । वित्रिचतुःशावत्वं सुभिद पञ्चभिर्टपान्यत्वम् । अण्डावकिरणमेकानुजा प्रसूतिश्च न शिवाय ॥५॥ क्षारकवर्णैश्चौराश्चिमृत्युः सितैश्च बहिमयम् । विकलैर्दुर्भिक्षमय काकानां निर्दिशेच्छिशुभिः॥५४॥ अथ टिटिभाण्डानि । "चत्वारिटिहिभाण्डानि मासाश्चत्वार आहिता। अधोमुखाण्डमासे स्याद् वृष्टिोंर्ध्वमुखाण्डके ॥५५॥ जलप्रवाहेऽप्यण्डानां मुक्तिर्दृष्टिनिरोधिनी। उच्चभागे टिहिभाण्डमुक्त्या मेघमहोदयः॥५६॥ रुद्रदेवस्तु- काकस्याण्डानि चत्वारि वाण प्रथम स्मृतम्। __ यदि वालवृक्ष (नालियर ) में बालवधूटी की जैसे विना ऋतुके फल आजाय तो देशमें विभेद हो तथा वृक्षसे दूध स्रवे तो सब द्रव्यों का क्षय हो ॥५२॥
कौवें के दो तीन या चार बच्चे हों तो सुभिक्ष, पांच हों तो दूसरा राजा हो, एक अंडा ही प्रसवे तो अशुभ होता है || ५३ ॥ क्षारवर्ण के अंडेसे चोर भय, चित्रवर्णसे मृत्यु, सफेदसे अनि भय, और विकलवर्णसे दुर्मिक्ष इत्यादि कौएँ के बच्चोंके वर्ण परसे शुभाशुभ जानना ॥ ५४ ॥
टिटहरी के चार अंडे परसे आषाढादि चार महीने कल्पना करें, जितने भगडे अधोमुख हो उतने महीने वर्षा और ऊर्ध्वमुख वाले अगहे हो तो वर्षा न हो ॥ ५५ ॥ टिटहरी जल प्रवाह (नदी तालाव आदि जला. शय ) में अण्डे रक्खे तो वृष्टिका रोध हो और ऊंची भूमि पर रक्खे तो वर्षा अच्छी हो ॥ ५६ ॥
कौवे के चार प्रकार के अण्डे माने हैं-प्रथम वारुण, दूसरा आग्रेय,
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