Book Title: Meghmahodaya Harshprabodha
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 513
________________ शकुननिरूपणम् अक्षयण्यां तृतीयायां प्रपूर्य स्थालमम्बुना। रविं विलोकयेन्मध्ये तत्परूपं विमृश्यते ॥१२॥ रक्ते सूर्ये विग्रहः स्यान्नीले पीते महारुजः । श्वेते सुभिक्षं रजसा धूसरे तोडमूषकाः ॥१३॥ भिक्षुकानां च भिक्षाप्तिबहुला सा सुभिक्षकृत् । जलेऽधिके महावर्षा धान्ये वृद्धऽतिसुस्थता ॥१४॥ पूर्णकुम्भोऽथवा स्थाप्यो मृत्पिण्डानां चतुष्टये।। आषाढादिचतुर्मास्या पृथक् नाम्ना प्रतिष्ठिते ॥१५॥ : कुम्भाद्गलजलेनाा यावन्तः पिण्डकामृदः । . . वृष्टिस्तावत्सु मासेषु शुष्के पिण्डे न वर्षणम् ॥१६|| अथ राखडी ( रक्षाबंधपर्व ) विचार:-.---. . श्रावण्यामथ राकायां रक्षापर्वणि वीक्षते । आगच्छगोधनं सायं तस्माद् या गौ पुरस्सरा ॥१॥ तस्याश्चिवर्षयोधः शुभाशुभविनिश्चयात् ।. उत्पत्ति न्यून हो ॥ ११ ॥ अक्षय तृतीयाको एक थालीमें जल भर कर इसमें सूर्य को देखे और उसका स्वरूप विचारें ॥१२॥ सूर्य लाल. दीखे तो विग्रह, नीला तथा पीला दीखे तो महा रोग, सफेद दीखे तो सुभिक्ष, मट्टी युक्त धूसर वर्ण दीखे तो टिड्डी चूहें आदि का उपद्रव हो ॥१३॥ भिक्षुकों को भिक्षा की प्राप्ति अधिक हो तो वह सुभिक्षकारक जानना । जलकी अधिकता प्राप्त हो तो महर्षाि और धान्य की अधिकता हो तो बहुत सुख हो ॥१४॥ 'आषाढ अादि चार महीने का नामवाले माटी के चार पिंड (गोले) बनाकर उनके उपर जलसे पूर्ण घड़ेको रखें ॥१५॥ जितने विंडकी माटी कुंभसे झरता छुपा जल से भींज जाय, उतने महीने में वर्षा हो और शुष्क पड़ी रहे उस महीने में वर्षा ने हो ॥१६॥ रक्षा बंधनका पर्व याने श्रावण शुक्ल पूर्णिमाके संध्या समय गोंधन (गौ समुह) को आला "Aho Shrutgyanam"

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