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मेघमहोदय
श्यपीगोत्रतश्चैवें नामतों विश्रुता तुला ॥२८ क्षौमं चतुःसूत्रकसन्निबद्धं, . __ षडगुलं शिक्यकवस्त्रमस्याः। खत्रप्रमाणंचदशाङ्गुलानि,
षडेव कक्षोभवशिक्यमध्ये ॥२६॥ याम्ये शिक्ये काश्चनं सन्निवेश्य, .
शेषद्रव्याण्युत्तरेऽम्बूनि चैवम् । तोयैः कौप्यैः स्पन्दिभिः सारसश्च,
वृष्टिहीना मध्यमा चोत्तमा च ॥३०॥ दन्तै गा गोहयाद्याश्च लोम्ना,..
भूपश्चाज्यैः सिक्केन द्विजाद्याः । तबदेशा वर्षमासा दिनाच,
शेषद्रव्याण्यात्मरूपस्थितानि ॥३॥ से प्रसिद्ध है, तूं गोत्रमें काश्यपी और 'तुला' नामसे प्राव्यात है ॥२८॥ . सन की बनी हुई चार डोरियों से बंधि हुई छह अंगुलका विस्तारवाली तखड़ी (पल्ला) होनी चाहिये, और उसकी चारों डोरियों का प्रमाण दश दश अंगुल होना चाहिये । इन दोनों तखड़ी के बीच में छह अंगुल की * कता रखनी चाहिये ॥ २६ ॥ दक्षी ग ओर के पल्लों सोना और बांयी ओरके पल्ले में धान्य आदि दूध तपां जल रखकर तोड़ना चाहिये। कुंमा सरोवर और नदी के जल से क्रम से हीन मध्यम और उत्तम वर्षा जानना अर्थात् कूप का जल बढ़े तो तो हीन वर्षा, सरोवर का जल बढ़े. तो मध्यम वर्षा और नदी का जल बढ़े तो उत्तम वर्षा कहना ॥ ३० ॥ दांतो से हाथी', लोम से गौ घोड़ा आदि पशु , घीसे राजा , सिक्थ से ब्राहीण आदि की वृद्धि या हानि जानी जाती है। उसी तरह - * मिस सूत्र को पकडकर तराजू को उठाते है उसको ऋक्षा कहते है।
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"Aho Shrutgyanam"