________________
जलयोगः
पूषाचतुष्कं चन्द्रस्य भानीमानि तथोत्तरा ॥१०६॥ शेषाणि सूर्यशक्षाणि फलमेषामिहोदितम् । सूर्ये सूर्ये महान् वायुश्चन्द्रे चन्द्रे न वर्षणम् ॥११॥ *सूर्यचन्द्रमसोर्योगो यदि स्याद रात्रिसम्भवः । तदा महावृष्टियोगः कीर्त्तितोऽयं पुरातनैः ॥११॥ पुंस्त्रीनपुंसकनक्षत्रयोगः-- भानि नार्यो दशार्द्रातः क्लीव त्रयं द्विदैवतः । मृलाश्चतुर्दशआणि पुरुषाख्यानि कीर्तयेत् ॥११२॥ नरे नरे भवेत्तापो महातापो नपुंसके। स्त्रिया स्त्रिया महावातो वृष्टिः स्त्रीनरसङ्गमे ॥११॥
एवं द्वारचतुष्टयी समुदिता प्रोक्ता पुनदिशे, उत्तरा ये चन्द्रमाके नक्षत्र हैं ॥१०६॥ और बाकी के सूर्य नक्षत्र हैं। इनका फल सूर्यका नक्षत्र में प्रवेश के समय विचारना-- चंद्र और सूर्यके दोनों नक्षत्र सूर्य के हो तो महावायु चलें और दोनों नक्षत्र चंद्रमाके हो तो वर्षा न हो॥११०॥परंतु सूर्य चंद्रमा दोनों के नक्षत्र हो तो प्राचीन लोगोंने बडा धृष्टि योग कहा है ॥१११॥
आर्द्रा आदि दश नक्षत्र स्त्रीसंज्ञक है, विशाखा आदि तीन नक्षत्र नपुंसक संज्ञक हैं और मूल आदि चौदह नक्षत्र पुरुष संज्ञक हैं ॥११२॥ सूर्यका नक्षत्रमें प्रवेश समय सूर्य और चंद्रमा दोनों पुरुषसंज्ञक नक्षत्रमें हो तो गरमी पड़े, नपुंसक संज्ञक नक्षत्र में हो तो महान् ताप (गरमी) पड़े, स्त्रीसंज्ञक नक्षत्र में हो तो महावायु चले तथा स्त्रीसंज्ञक और पुरुष संज्ञक नक्षत्र में हो तो वर्षा हो ॥११३॥
*विशेषः- बुधः शुक्रसमीपस्थः करोत्येकार्णवां महीम्।
तयोरन्तर्गतो भानुः समुद्रमपि शोषयेत् ॥१॥ . .. बुध और शुक्र पास २ हो तो बहुत दर्षा हो यदि इन दोनों के मध्यमें सूर्य हो तो समुद्र भी शुष्क होजाय अर्थात् वर्षा न हो।
"Aho Shrutgyanam"